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मात-पिता ने वर्धमान और जन्मोत्सव के समय आपके माहात्म्य को देखकर इन्द्रादि देवताओं ने आपका महावीर नाम रक्खा।
- प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् महावीर को जो जो प्रमुख उपसर्ग हुए और आपने कष्टदाताओं के प्रति जो प्रेम भाव रखा तथा कष्टों पर जिस अनुपम आत्मिक बल से विजय प्राप्त की उस सब का वर्णन २१ वें से २६ वें पद्य तक किया गया है । इन उपसर्गों में १. कुमार ग्राम के बाहर गोपालक, २. तरुण, तरुणियों, भमरों आदि, ३. शूलपाणी यक्ष, ४. चण्डकौशिक सर्प तथा ५. संगम देव द्वारा किये गये उपपर्गों के अतिरिवत एक रात्रि में २० प्रकार के अन्य भयङ्कर उपसर्ग तथा गोप द्वारा उनके कानों में कांसे की शलाका डालने की घटना का समावेश किया गया है
पद्य २७ से ३० तक भगवान ने उग्र तपश्चर्या का वर्णन किया गया है जिसके अनुसार १ छमासी, ६ चातुर्मासी, ३ तोन पासी. ६ दो मासी, १२ एक मासी, ७२ अर्धमासी, २ अढीमासी, भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा, और सर्वतोभद्रप्रतिमा ( जो आपने एक साथ ही की थीं), १२ तीन अहोरात्रि प्रति पा तथा ५ मास २५ दिवस की तपस्या (जिसका पारणक चम्पानगरीय दधिवाहन की पुत्री च दनबाला के हाथ से कौशाम्बी में हुआ था) को लेकर भगवान की १२ वर्ष ६ मास एक पल की उस दीर्घ तपस्या का वर्णन किया गया है जिसमें आपने केवल २४८ दिवस ही भोजन ग्रहण किया था।
३२ वें से ३३ वें पद्य तक केवलान प्राप्ति के अनन्तर तथा प्रथम देशना निष्फल होने पर उसी रात्रि को १२ योजन विहार रके पावापुरी नगरी के महसेन उद्यान में भगवान् के पधारने तथा चतुर्विध संघ की स्थापना का उल्लेख है।
__ पद्य ३६ और ४० में भगवान् की प्रशंसा करता हुआ, भवितव्यता वश गोशालक द्वारा होने वाले उपसर्ग का वर्णन किया गय है। यहीं भगवान् की परोपकारिता का उल्लेख करते हुए विप्र ऋषभदत्त और देवानन्दाको मुक्तिप्रदान करने का भी उल्लेख है।
___वीर चरितः- इस चरित्र में ८ ११ तक के केवल चार पद्य ही बड़े महत्त्व के हैं जिनमें कवि ने कर्म की विचित्र गति का सुन्दर चित्र दिखाया है:
- देवेन्द्र स्तुत त्रिजगत्प्रभ तथा त्रिभान के अनन्यमल्ल होने पर भी आपको मरीचि के भव में उपाजित पाप का लवलेश रहने के कारण गोपादि से अनेक प्रकार की कदर्थना सहन करनी पडी। आह ! कर्मगति विचित्र है कि स्त्री. गाय, ब्राह्मण तथा बालक की हत्या और महापाप करने वाले दृढप्रहारी आदि पुर प तो उसी भव में सिद्ध हो गये किन्तु आपको १२।। वर्ष एक पक्ष तक कष्ट सहन करने के पश्चात् ही कैवल्य पद प्राप्त हुआ।
सामान्य-प्रसंग तीर्थंकर के भव से तीसरे पूर्वभव में वीस स्थानक तप की आराधना करना, कुक्षि में उत्पन्न होने पर माता द्वारा १४ स्वप्न देखना और उसी दिवस से घर में समग्र वस्तुओं की वृद्धि होना, जन्म होने पर ५६ दिक्कुमारियों और ६४ इन्द्रों द्वारा मेरु पर्वत पर जन्मोत्सव मनाना, जन्म से ही तीन ज्ञान संयुक्त होना, प्रव्रज्या पूर्व लोकान्तिक देवों द्वारा बोध प्राप्त
वल्लभ-भारती ]
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