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१४. शृङ्गार-शतम् कवि की साहित्यिक कृतियों में शृङ्गार शतक का विशिष्ट स्थान है। उपाध्याय जिनपाल और सुमति गणि ने इस शतक का प्रबन्ध काव्य के रूप में उल्लेख किया है । अद्यावधि यह कृति अप्राप्य ही थी किन्तु अनुसंधान और खोज करते हुए, सन् १९५४ में कोटा से बम्बई का पैदल प्रवास करते हुए श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भंडार इन्दौर में सं० १५०७ की लिखित एकमात्र प्रति मुझे प्राप्त हुई। इस प्रति में कतिपय लेखन-त्रुटियां हैं, तो कतिपय स्थानों पर पद्यों की पंक्तियां ही गायब हैं । अस्तु
कवि की यह रचना आचार्य अभयदेव के पास उपसम्पदा ग्रहण करने के पूर्व की है। 'तत्काव्यदीक्षागुरु' वाक्योल्लेख से स्पष्ट है कि कूर्चपुरीय आचार्य जिनेश्वर की ओर इनका संकेत है । उ० जिनपाल और सुमति गणि ने भी स्वीकार किया है कि व्याकरण, साहित्य, अलंकार, छंद, न्याय, दर्शन, आदि का अध्ययन और दीक्षा आचार्य जिनेश्वर से ही कवि ने प्राप्त की थी और जैनागमों का अभ्यास तथा उपसम्पदा आचार्य अभयदेव से ग्रहण की थी।
कवि ने भरत का नाट्यशास्त्र और कामतन्त्र का अध्ययन कर इस शतक की रचना की है। इस शतक में कूल १२१ पद्य हैं। वियोगिनी. अनूष्ट्रप, बसन्ततिलका, मालिनी, मन्दा
क्रान्ता, हरिणी, शिखरिणी पृथ्वी, शार्दूलविक्रीडित और स्रग्धरा आदि छन्दों का प्रयोग कवि • ने स्वतन्त्रता से किया है । अलंकारों का प्रयोग भी इसमें सुन्दर ढंग से हुआ है।
प्रथम पद्य में कवि ने जगदीश्वर की स्तुति की है। द्वितीय पद्य में सरस्वती और तीय पद्य में कवि-वाणी की प्रशंसा है। पद्य ४, ५, ६, ७, में सज्जन-दुर्जन का उल्लेख है ओर पद्य ८ से ११६ तक भाव, विभाव, अनुभाव, संचारीभाव, स्थायीभावों के साथ लीलाविलसित नायिका के अंगोपांगों का तथा संभोग शृङ्गार का उत्कट स्वरूप वर्णित किया है; जो पठनीय है । पद्य १२० और १२१ में रचना का कारण और पूर्व कवि तथा उनके ग्रन्थों का उपजीव्य हूँ कहकर स्वनामोल्लेख किया है । इसका विशेष वर्णन कवि-प्रतिभा में द्रष्टव्य है।
१५-२०. चरित्र-षटक इस चरित्र षट्क में—१. आदिनाथ, २. शान्तिनाथ, ३. नेमिनाथ, ४. पार्श्वनाथ और ५., ६. महावीर देव-इन छ चरित्रों का संक्षिप्त समावेश है। इसमें पद्यों की संख्या क्रमशः इस प्रकार है-२५, ३३, १५, १५, ४४ और १५ । ये छहों चरित्र प्राकृत भाषा में हैं और सभी चरित्रों में कवि ने आर्या छन्द का ही प्रयोग किया है। केवल ५वें महावीर-चरित्र में प्रथम पद्य मालिनी वृत्त और अन्तिम पद्य शार्दूलविक्रीडित वृत्त में है। चरित्रों में घटना बाहुल्य होने के कारण अलंकारों का समावेश इनमें नहीं के समान ही है किन्तु विशेषणों में कहीं-कहीं रूपक और उपमा अलंकार अवश्य ही प्राप्त हो जाते है। छहों चरित्रों का सारांश इस प्रकारहै।
बल्लभ-भारती ]