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________________ ३८. पाश्र्व जिन स्तोत्र ( देवाधीश ० ) ३६. ४०. " ग्रन्थ नाम " ( समुद्यन्तो ० ) ( विनय विनमद्० ) चित्रकाव्यात्मक (शक्तिश्ले षु० ) चकाष्टक (चक्रे यस्य नतिः ) ४१. ४२. ४३. सरस्वती स्तोत्र ( सरभसलसद्० ) ४४. नवकार स्तव ( किं किं कप्पतरु० ) विषय स्तोत्र 31 37 " 11 3. अनुपलब्ध ग्रन्थ - १. आगमोद्धार' तथा २. प्रचुरप्रशस्ति उक्त समस्त ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है : -- भाषा संस्कृत 11 11 "1 17 73 अपभ्रंश गाथा अथवा पंद्य संख्या १० २४ १७ १०. ८ २५ १३ १- सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार प्रकरण इस ग्रन्थ में कर्मप्रकृति, पंचसंग्रह आदि कर्म सिद्धान्त के विविध ग्रन्थों का आलोडन कर नवनीत की तरह संक्षेप में कर्म सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है, इसीलिये कवि ने इसका नाम सूक्ष्मार्थविचारसारोद्वार प्रकरण रखा है। इसका अपरनाम सार्द्धं शतक प्रकरण है जो इसकी ५२ पद्य - पंख्या का सूचक है । इस लघुकायिक ग्रन्थ में कर्म - प्रकृति के सिद्धान्त, मूल- उत्तरभेद, प्रकृति भेद, बन्ध, अल्पबहुत्व, स्थिति, योग, रस, उदय और गुणस्थान आदि का वैशिष्ट्य पूर्ण प्रतिपादन होने से सारोद्धार नाम सार्थक ही है जो कवि के सैद्धान्तिक ज्ञान की अगाधता और उक्ति लाघव की ओर संकेत करता है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में कवि कर्मजेतृ महावीर को नमस्कार कर कर्मादि विचारों का संक्षेप में वर्णन करूंगा-प्रतिज्ञा करता है । पद्य २ से २२ तक कर्म बन्ध के मूल कारण - ज्ञानावरणीय, दशनावरणीय, अंतराय, मोहनीय, आयु गोत्र, वेदनीय और नाम कर्म का उल्लेख कर, प्रत्येक कर्म के भेद जो कुल १५८ होते हैं और उनका प्रकृति, स्थिति रस तथा प्रदेश से सम्बन्ध दिखाया है । पद्य २३ से ४० में पंचेन्द्रिय जीवों में जिन प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता उन प्रकृतियों को गिनाया है । कर्म प्रकृतियों में कुछ प्रकृतियें ध्रुवोदय हैं और कुछ अध्रुवोदय हैं । ध्रुव और अध्रुव सत्तावाली कर्म-प्रकृतियां कौन-कौनसी हैं ? यह गुणस्थानों की अपेक्षा बतलाया गया है । पद्य ४१ से ४८ में घाती और अघाती प्रकृतियां अपने प्रतिपक्ष सहित बतलाई गई हैं और इन प्रकृतियों के कारण का उल्लेख भी किया गया है । कर्मप्रकृतियों में कुछ प्रकृतियां शुभ हैं, कुछ अशुभ हैं और कुछ प्रकृतियां अपरावर्तमान भी हैं । पद्य ४ से ६३ $1 १. चर्चरी टीका पृष्ठ १६ । श्री अगरचंदजी नाहटा की सूचनानुसार स्वप्नसप्ततिका मौर भागमोद्धार एक ही ग्रन्थ है । २. चर्चरी टीका पृष्ठ १६ । वल्लभ-भारती ] [ ८७
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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