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________________ सद जैनत्व जागरण..... विद्वान Okakura के अनुसार प्राचीन एक समय Loyang प्रान्त में ३०० भारतीय मुनि और १०,००० भारतीय परिवार रहते थे। प्राचीन श्रमण या अर्हत् संस्कृति सिन्धुघाटी अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, इजिप्ट, सीरिया, असीरिया, टर्की से फैलती हुई रशिया, साइबेरिया, मंगोलिया और चीन तक पहुँची तथा चीन से वियतनाम तथा अन्य दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में प्रतिष्ठित हुई । • इक्ष्वाकु और सूर्य वंश का प्रादुर्भाव ऋषभ परम्परा से हुआ । चीन में १५०० B.C. में Shang Dynesty शासन करती थी। ये सूर्यवंशी क्षत्रिय थे जो श्रमण संस्कृति पालन करते थे। पश्चिमी तिब्बत में प्राचीन Sang Sung Civili-zation का जो वर्णन मिलता है और जिन्हें Bonpo धर्म से सम्बन्धित माना गया है। ये भी व्रात्य क्षत्रिय थे । इसके बाद Hsia वंश का शासन आता है। ये भी इक्ष्वाकू सूर्य वंशी थे। मार्कोपोलो ने Canton शहर में ५०० मूर्तियाँ होने का वर्णन किया है । जो तीर्थंकर मूर्तियाँ थी। उसने Suju शहर का वर्णन किया है । Kiang Han प्रान्त के Su Chau city में एक बहुत बड़ा मंदिर है जिसमें भूत, भविष्य और वर्तमान के बुद्धों की मूर्तियाँ है जो भूत, वर्तमान और भविष्य के तीर्थंकर चौबीसी के अनुसार है । Dragon चीन का प्रमुख धार्मिक प्रतीक है जो तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के प्रभाव में ही नहीं अपितु सभी क्षेत्रों में रहा है । Marco Polo ने अपने विवरण में लिखा है कि Hang Chau शहर की प्रमुख मूर्ति कमल पर प्रतिष्ठित है जो छठें तीर्थंकर पद्मप्रभु का प्रतीक है। Quang Zhouk के Janjia Ochang में जो मूर्ति मिली है वो भी तीर्थंकर मूर्ति ही है। चीन में Monkey God की मान्यता है। चीन और तिब्बत के लोग वानर को अपना पूर्वज मानते हैं । चौथे तीर्थंकर अभिनन्दन स्वामी का लांछन कपि है। पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ का लांछन चकवा और छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु का प्रतीक लालकमल माना जाता है जो कि चीन की बौद्ध प्रतिमाओं में परिलक्षित होता है। वहाँ पर तीर्थंकर केवलज्ञानी, तत्त्वज्ञानी, आचार्य या साधारण ज्ञानी सभी को बुद्ध कहने का प्रचलन है। Little Buddha, Big Buddha, Master Buddha, Disciple Buddha । बीजिंग के मंदिर में अन्य बुद्धाओं के साथ ऋषभबुद्ध और अजितबुद्ध की मूर्तियाँ भी है। वहाँ के मंदिरों के हॉल का नाम महावीर हॉल है और वे बुद्ध का ही एक नाम महावीर बताते है। अभी हाल में एक मूर्ति की फोटो कॉपी देखने में आई जिसमें स्वस्तिक सीधा बना हुआ था जो सामान्यतः वहाँ इस रूप में नहीं होता । उत्तरी चीन
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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