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जैनत्व जागरण.......
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है । मंगोलियन घोड़ें विश्व प्रसिद्ध रहे हैं । मंगोलिया में आज अनेक बौद्ध बिहार है जिनमें कुछ पहले जैन केन्द्र थे । मंगोलिया के बिहारों में गाण्डडू: प्रमुख बिहारों में है । इस बिहार का द्वार शंख, चक्र और मीन के चित्रों से सजा है, तथा दो सिंह बने है । मुख्य द्वार पर धर्म चक्र और मृग है । इससे स्पष्ट है कि यह बिहार पहले जैन केन्द्र था । शंख, चक्र, मीन, सिंह, मृग आदि जैन प्रतीक है बौद्ध नहीं । जब भारत में ही इतिहासकारों ने ऐसी भूलें की है तो विदेशों में यह एक सामान्य बात है । इसी मन्दिर का तीसरा भवन चन्दन जोवो भवन है जिसका अर्थ चन्दन के प्रभु है । इसके छत्र पर धर्म चक्र बना है । यहाँ के पुस्तकालय में स्थित पटल का वस्त्र नवरत्नों से कढ़ा है जिसके मध्य में स्वस्तिक और चारों ओर अष्टमांगलिक चिन्ह है जो केवल जैन परम्परा में प्राप्त होते है । मंगोलिया में जैन मंदिरों के खण्डहर आज भी देखे जा सकते हैं । लटाविया के प्रमुख लेखक पादरी मलबरगीस ने १९५६ ई. में लिखा था कि लटाविया, जर्मनी और रूसियों के पूर्वज भारत से आकर यहीं पर बस गए थे । ये भारतीय पणि थे । ये भारतीय पणि थे जो व्यापार के लिए अन्य देशों में जाते थे । लटाविया, फिनलैड, लिथुआनिया आदि देशों की भाषा में अनेक संस्कृत शब्द प्रचलित है । कालान्तर में पणि व्यापार छिन्न-भिन्न होने के बाद भी वहाँ की सांस्कृतिक स्थिति अपरिवर्तित रही । फिनलैंड को नाम वहाँ बसी पणि जाति के नाम पर पड़ा प्रतीत होता है । फिनलैंड में १७वीं शताब्दी के बाद में ही ईसाई धर्म का प्रभाव हुआ था । श्रद्धेय श्री विशभरनाथ पाण्डेय जो कई राज्यों के गवर्नर रहे उन्होंने कोलकाता की एक सभा में अपने वक्तव्य के दौरान मंगोलिया के जैन पुरातत्त्वों के विषय में जानकारी दी थी जो बहुत ही महत्वपूर्ण थी । An Indian Archaeologist in his article ‘Jain Church' in a paper in Bombay News (4th July 1934) wrote that in Mongolia, at one time a large population of the Jain community with many of their temples used to reside there. Today ruins of these temples and statues are still being excavated by archeologists.
• चीन तथा रूस It was long prior to Parsava and Mahavira, that India was the fruitful Centre of religion from 7th century B. C. and inwards. The Trans- Himalyan, Oxiana,