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जैनत्व जागरण.....
प्रस्तुत पुस्तक: जैनत्व जागरण के परिप्रेक्ष्य में
इतिहास हमारा दर्पण होता हैं । इतिहास हमें दो प्रकार की शिक्षाएँ देता है -
१. समृद्ध इतिहास से गौरवान्वित होना - प्रेरित होना एवं अनुकरम-अनुसरण योग्य अनुमोदनीय बातों को ग्रहण करना ।
२. इतिहास को बदल देने वाली गलतियों को पुनः न दोहराने की प्रतिज्ञा लेना । प्रस्तुत को पुस्तक आहवान हैं उन सभी शासनप्रेमियों को, जो इतिहास एवं वर्तमान के बल पर भविष्य की दिशा निर्धारित करने में चिंतनशील-मननशील हैं । प्रस्तुत कृति आह्वान है उन सभी धर्मप्रेमियों को जो जैन धर्म के गौरवशाली इतिहास के हस का पठन कर जैनत्व की जागृति करने के इच्छुक हैं । यह पुस्तक दो खण्डों में विभाजित हैं - • प्रथम खण्ड - जैन धर्म की विश्वव्यापकता
प्राचीन समय में स्वतंत्र जैन धर्म विश्वभर में विख्यात था। जैन तीर्थंकर विविध रूपों प्राचीन समय में स्वतंत्र जैन धर्म विश्वभर में विख्यात था ।
जैन तीर्थंकर विविध रुपों में आज भी अनेकों संस्कृतियों-धर्मों में उपास्य हैं । विश्व की समूची सभ्यताओं का आदिधर्म तीर्थंकर प्रणीत जैन धर्म ही रहा है, जिसका अनुसंधान प्रस्तुत खंड में किया गया है । • द्वितीय खण्ड - सराक संस्कृति : एक अनुशीलन
किसी समय जैन धर्म के अनुयायी रहे जैन भावक (सराक) किन्तु समय की आधी से अपनी मूल पहचान खो चुके है । भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में बसे थे सराक संस्कृत एवं सराक भाई एक जीवन्त उदाहरण हैं जैन समाज के एक उन्नत वर्ग के हस का । पुरातात्विक साक्ष्य भी जैन धर्म के गौरवमयी इतिहास की गवाही देते हैं। प्रस्तुत खण्ड में सराक संस्कृति का समीक्षात्मक अध्ययन किया है।
- पं. पुंडरिकरत्नविजय गणि.