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________________ जैनत्व जागरण...... २८५ मंदिर बने थे । मूल मंदिर के गर्भगृह में विशालकाय भैरव विराजमान थे । अंधेरे में ढँके गर्भगृह में, एक बड़ा सा प्रदीप (दीपक) जलता रहता था। भक्तगण भक्ति के साथ पुजारी के निर्देश अनुसार भैरव के माथे पर बेलपत्ते, कच्चा दूध चढ़ाकर मंत्रोच्चारण करते थे- नमः शिवाय शान्ताय कारण त्रय हेतवे ...।" यह भैरवनाथ और कोई नहीं देवाधिदेव तीर्थंकर परमात्मा हैं । नदी के बिलकुल पास था प्रवेश पथ प्रवेश पथ के संलग्न आंगन में एक भैरवी की मूर्ति थी । उन्हें प्रणाम करके मंदिर में प्रवेश करने का रिवाज था । प्रवेश पथ के बाई तरफ एक छोटा घर बना हुआ था । उसमें पत्थर का शिशु, जो अभी जन्मा हो, प्रसूति और धाई माँ (धारी) की मूर्तियां बनी हुई थी । इन सबका अर्थ क्या है, आज तक नहीं निकाला जा सका। मंदिर से नदी की ओर जाते समय उत्तर की और एक पत्थर का घट बना हुआ था । आज यह सबकुछ दामोदर के नीचे जा चुका है 1 1 खड़रा गाँव से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पाथरबाड़ी गाँव । इस गाँव से १/२ किलोमीटर दूर एक सूने मैदान में खुले आसमान के नीचे, बिना संरक्षण के, एक पत्थर की मूर्ति पड़ी हुई है, यह एक चतुर्भुज देवीमूर्ति है। हवा और पानी से निरंतर घिसने के कारण हाथों में बने अस्त्रों की पहचान कठिन है । यह मूर्ति एक हाथी पर बैठी है । हाथी की अपूर्व निर्माण शैली आज भी उसी तरह अद्भुत सुंदर है । खगेन्द्रनाथ माजी के अनुसार यह जैन देवी चक्रेश्वरी की मूर्ति है । स्थानीय लोग इन्हें नीलकंठवासिनी के नाम से पूजते हैं । कुछ दिन पहले अंचल के घनाढ्य व्यक्ति बिज महाला के उद्योग से मूर्ति को मिट्टी से निकालने गए । लेकिन बहुत सारे लोग मिलकर भी लाख कोशिश के बावजूद मूर्ति निकालने में असमर्थ हुए । लेकिन इस खींचातानी में दाहिने तरफ के ऊपर भाग की क्षति हुई और वह अंश टूटकर गिर गया । उसी रात को एक अमंगल सूचक घटना घटी और उनके बड़े बेटे की पत्नी की मौत हो गई । बाद में वहीं पक्का मंदिर बनाने की उन्होंने कोशिश की । आज भी वहां काफी ईंटे पड़ी हुई मिलती है । लेकिन डर से वे और उस काम को आगे नहीं बढ़ा सके।
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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