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________________ जैनत्व जागरण...... २७३ इस अध्याय में विशेष रूप से उन्हीं मूर्तियों और देवालयों की चर्चा यहाँ की गई है, जो विलुप्त होने के कगार पर खड़े हैं। आशा है कि आनेवाले दिनों में कोई सच्चा अन्वेषक और संस्कृतिप्रेमी इन सब मूर्तियों और देवालयों पर विस्तृत शोधकार्य के लिए आगे आएँगे और मानभूम के खोए ऐश्वर्य को फिर से उद्धार करने में समर्थ होंगे । पुरुलिया क्षेत्र के देवालय स्वयं में विशेष कलात्मक इतिहास संजोए हुए है । उन्नत - पूर्ण देवालयों से खण्डहर तक का सफर... प्रत्येक दीवार एक नवीन कथा छिपाए बैठी है । इस प्रकरण में प्रमुख रुप से ३ स्थलों के देवालयों की च्चर्चा की जा रही है -- पुरुलिया के देवालय मानभूम तथा पुरुलिया के देवालयों के निर्माण में चार शैलियां देखने को मिलती है । (१) रेख या शिखर शैली का देवालय (२) पीड़ा या भद्र शैली का देवालय (३) शिखर शीर्ष पीड़ा या भद्र शैली में बना देवालय (५) स्तूप शीर्ष पीड़ा या भद्र शैली में बना देवालय । लेकिन यह स्वीकार करना पड़ेगा कि पुरुलिया में रेख या शिखर शैली के देवालयों की संख्या अधिक है। जैसे बादा का देवालय, पाड़ा का देवालय, पाकबिड़रा का देवालय, दूधपुर का ध्वंस हो चुका देवालय, देउल घाटा का पत्थर और इंटों से बना देवालय, तेलकूपी का देवालय, टुशाया का देवालय आदि । पुरुलिया के कलाकारों ने रेख शैली को उड़ीसा के कलाकारों की मंदिर निर्माण पद्धति से लिया था । उड़ीसा की निर्माण शिला जैसे ही (रेख देवालय) पुरुलिया के मंदिरों को आधारभूमि से शीर्षस्थल पर चार खंडों में बाँटा गया है । ये हैं- पिष्ट, बाड़, गंडी और मशुक । पिष्ट निर्माण का वह अंश है, जो दिखता नहीं । यह जमीन के नीचे ही रहता है । देखने पर ऐसा लगता है, जैसे बिना आधार भूमि के देवालय मिट्टी से बना हुआ
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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