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जैनत्व जागरण...
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दोनों ही शशांक के उत्पीड़न से नहीं बच सके थे। आर्य मंजुश्री मूल कल्प में कहा गया है कि राजा शशांक ने बौद्ध और जैन दोनों को ही उत्पीड़ित किया था । इस उत्पीड़न का इतिहास शायद नहीं लिखा गया हो, किन्तु वहाँ के विनष्ट मन्दिर और मूर्तियाँ जो साक्ष्य दे रही है उसे देखते हुए भी यह कहना कि काला पहाड़ लोक यह सब कार्य किया, उचित नहीं है ।
धारापाट के मन्दिर का ही दृष्टान्त लीजिए । इस मन्दिर का जो सबसे अधिक लक्षनीय है वे हैं शिखर निबद्ध तीन मूर्तियाँ, उसमें एक है वासुदेव की, अन्य दो है जैन तीर्थंकर आदिनाथ और पार्श्वनाथ की । इन दोनों मूर्तियों को देखकर लगता है कि सुदूर अतीत में यहाँ या इसके आसपास किसी समय एक जैन धर्म का केन्द्र था । वर्तमान मन्दिर के प्रायः २०० गज दक्षिण पश्चिम में खूब बड़े टीले के ऊपर माकड़ा पत्थर का एक प्राचीन आमलक आदि का भग्नांश बिखरा हुआ मिलता है । सम्भवतः यह उस समय जैन मन्दिर था । उस मन्दिर के उल्पीडन के पश्चात् इस देवालय को केन्द्र कर एक वासुदेव उपासना का केन्द्र खड़ा हो गया । उसका एक मात्र प्रमाण उपरोक्त मन्दिर की वासुदेव मूर्ति ही नहीं समीप के दालान में मनसा नाम से उपासित पार्श्वनाथ की करीब ४ फुट ऊँची मूर्ति भी है । वस्तुत: इस जैसी कौतूहलोद्दीपक और साथ-साथ वेदनादायक मूर्ति पश्चिम बंगाल की मूर्तियों में अधिक नहीं हैं । नागछत्रधारी (इसीलिए मनसा में रूपान्तरित) पार्श्वनाथ मूर्ति के पीछे वाले प्रस्तर पर गदाचक्रधारी दो हाथ जोड़ दिए गए और लक्ष्मी सरस्वती की प्रथागत दो मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण कर दी गयी है ।
कर्नल डाल्टन और बेगलर ने विस्तृत रूप से प्रकाश डालते हुए लिखा है कि किस प्रकार शान्ति प्रिय सराक जाति के ऊपर सातवीं शताब्दी में ब्राह्मणों और उनके अनुयायियों द्वारा अत्याचार हुए और उन्हें यहाँ से स्थान पलायन करना पड़ा । पुनः १०वीं और १६वीं शताब्दी में ब्राह्मणों और भूमिजों द्वारा सराक संस्कृति और उनके निदर्शनों को जड़ से उखाड़ने का षड़यंत्र किया गया ।
Combining Colone! Dalton's and Mr. Beglar's theories