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जैनत्व जागरण.......
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कृषि कार्य में बेकारी बढ़ जाने से पहले जो परिवार पीछे उत्पन्न धान्य का परिमाण ३० क्वीन्टल था वह आज कम होते हुए १८ क्वीन्टल रह गया है । जनसंख्या में वृद्धि हो जाने से प्रति व्यक्ति के हिसाब से जमीन का परिमाण भी कम हो गया है । यही कारण है कि यहाँ के सराक नौकरी में अधिक जाने लगे हैं ।
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वर्धमान जिले में शिक्षितों की संख्या काफी अच्छी है उसी प्रकार व्यक्ति पीछे आय भी अन्य जिले के सराकों से अधिक है । बाँकुड़ा के सराकों की आर्थिक अवस्था एकदम अच्छी नहीं है । बाँकुड़ा, वर्धमान और संथाल परगना में सराकों की जनसंख्या के ३५ प्रतिशत मनुष्य रहते हैं । पुरुलिया में ५० प्रतिशत और वीरभूम मेदिनीपुर एवं राँची सिंहभूम अंचल में मात्र १५ प्रतिशत सराक रहते हैं ।
में एक सराक समाज के कुछ उत्साही युवकों ने गैर सरकारी रूप से सराक समाज की जनगणना का कार्य किया था । उनकी गणना के आधार पर कहा जा सकता है कि सराकों की कुल संख्या ३५९८१ हुई थी ।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वीरभूम और मेदिनीपुर जिले के सराकगण विलुप्त प्राय: है । और जो वहाँ बचे है वे लोग अपना स्व वैशिष्ट्य सुरक्षित नहीं रख सके । अनेक स्थानों में वे अन्य जातियों में मिल गए । सराकों का धर्म परिवर्तन :
हिन्दू धर्म की ओर से इन सराकों पर कम अत्याचार नहीं हुए । उन अत्याचारों का वर्णन में मिलता है हवेनसांग लिखित विवरण में । राजा शशांक के विषय में हवेनसांग ने लिखा है कि शशांक ने गया के बोधिवृक्ष को उखड़वा दिया, पाटलीपुत्र में बुद्ध के पद चिन्ह अंकित एक पत्थर को गंगा में फिकवा दिया, कुशी नगर के विहार से बौद्धों को मारपीट कर निकाल दिया । गया के एक मन्दिर से बुद्ध मूर्ति को हटाकर वहाँ शिवमूर्ति स्थापित करने का आदेश दिया | हवेनसांग बौद्ध थे । अतः उन्होंने बौद्धों पर किए गए अत्याचारों का वर्णन किया, जैनों के विषय में नहीं लिखा । फिर भी इससे यह अनुमान तो हो ही जाता है कि बौद्ध विहार और जैन मन्दिर