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________________ जैनत्व जागरण....... परम्परा और प्रमाण, में लिखा है भगवान् ऋषभदेव का वर्णन वेदों में नाना सन्दर्भों में मिलता है । कई मन्त्रों में उनका नाम आया है । मोहन जोदड़ो (सिन्धुघाटी) में पाँच हजार वर्ष पूर्व के जो पुरावशेष मिले है उनसे भी यही सिद्ध होता है कि उनके द्वारा प्रवर्तित धर्म हजारों साल पुराना है । मिट्टी की जो सीले वहाँ मिली है, उनमें ऋषभनाथ की नग्न योगमूर्ति है, उन्हें कायोत्सर्ग मुद्रा में उकेरा गया है । १९७ श्री हरिप्रसाद तिवारी और श्री नरसिंह प्रसाद तिवारी ने अपने शोध लेख में लिखा है कि "आज के जाम ग्राम के पास अजय नदी के उत्तरी तट पर स्थित पहाड़पुर गाँव से सिन्धु सभ्यता कालीन एक मातृमूर्ति का मस्तक प्राप्त हुआ है, जिससे सिन्धु जातियों के इस अंचल में आगमम का प्रमाण मिलता है ।" यह मातृमूर्ति का मस्तिष्क लेखकों के पास आज भी सुरक्षित रखा हुआ है । सिन्धुघाटी से प्राप्त अवशेषों में किसी प्रकार के शस्त्र नहीं मिले है जिससे पता चलता है किये लोग शान्ति प्रिय और अहिंसक थे । ये लोग कालान्तर में गंगा के किनारे आगे बढ़ते-बढ़ते पूर्वांचल की सीमा तक फैल गये । इनके उड़ीसा में जाने का प्रमाण भी मिलता है । कुछ समूह वर्धमान से उड़ीसा गये थे उदयगिरि तीर्थ के दर्शन के लिये तब वहां के राजा ने उनसे भेंट की और वहीं बसने का उनसे आग्रह किया तथा उनलोगों को रहने की जगह प्रदान की । खण्डगिरि और उदयगिरि की गुफाएं और मूर्तियाँ इन्हीं सराक शिल्पियों द्वारा निर्मित की हुई है ऐसा अनुमान किया जाता है । 1 सराक और अग्नि का सम्बन्ध : कई विद्वानों के अनुसार बंग शब्द आष्ट्रिक शब्द बंगा से निकला है जिसका अर्थ है सूर्यदेव । सभी प्राचीन संस्कृतियों में ऋषभदेव को सूर्यदेव को सूर्यदेव के रूप में भी पूजा जाता था । " उड़ीसा में जैनधर्म" किताब की भूमिका में नीलकण्ठ साहू ने इस पर विशेष प्रकाश डाला है । उन्होंने ऋषभ का अर्थ सूर्य बताते हुए उड़ीसा से बेबीलोन तक व्याप्त ॠषभ संस्कृति
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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