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जैनत्व जागरण.....
अथवा दूसरी शताब्दी है और इन शाखाओं की स्थापना ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में हो चुकी थी।
खेद का विषय है कि बंगाल देश से प्राप्त प्राचीन जैन मूर्तियों के सिंहासनों पर खुदे हुए लेखों को अभी तक पुरातत्ववेत्ताओं ने पढ़ने का कष्ट नहीं उठाया । उनकी ऐसी उपेक्षावृत्ति से अभी तक बंगाल का जैनधर्म संबंधी प्राचीन इतिहास प्रकाश में नहीं आ सका । हमारी यह धारणा है कि जब ये लेख पढ़े जायेंगे तब जैन इतिहास पर बहुत सुन्दर प्रकाश पड़ेगा। पी.सी. चौधरी Jaina-Antiquities in Manbhum में लिखते हैं कि
“A number of inscriptions on the pedestals of some of the images have been found. They have not yet been properly deciphered or Studied. A proper study of the inscription and the images supported by some excavations in well identified area of jaina culture will not doubt throw a good deal of light on the history of culture in this part of the county extending over two.
महाराज खारवेल द्वारा निर्मित जैन गुफाएं तथा बंगाल, बिहार और उड़ीसा से प्राप्त जैन तीर्थंकरों के मन्दिर और मूर्तियां प्रायः उन जैन श्वेताम्बर आचार्यों द्वारा स्थापित किये गये होने चाहियें जिन के गणों, कुलों और शाखाओं का "कल्पसूत्र" में वर्णन आता है। "बंगाल का आदि धर्म" नामक लेख में हम देख चुके हैं कि बंगाल देश में निग्रंथों की चार शाखायें१-ताम्रलिप्तिका, २-कोटिवर्षिया, ३-पौंड्रवर्द्धनिया, ४-दासी खटिया थी। श्री कल्पसूत्र में इन का उल्लेख इस प्रकार है :
"थेरस्स णं अज्जभद्दबाहरस पाईणसगोत्तस्स इमे चतारि थेरा अंतेवासी, अहावच्चा अभिण्णाया होत्था, तंजहा-१-थेरे गोदासे, २-थेरे अग्निदत्ते, ३थेरे जण्णदत्ते ४-थेरे सोमदत्ते कासवगुत्तेमं । थेरेहितो गोदासेहितो कासव गुत्तेहिंतो इत्थणं गोदासगणे नामं गणे निग्गए, तस्सणं इमाओ चतारि साहाओ एवमाहिज्जंति, तंजहा तामलित्तिआ, कोडिवरिसिया, पोंडवद्धणिया, दासीखव्वडिया ।"