________________
जैनत्व जागरण....
3. आशा की एक किरण आज हम सब अपने - अपने कार्यक्षेत्र - पंथ - समुदाय - प्रोजेक्ट - भक्तगण तक सीमित है । मैं चाहता हूँ हम सब साथ मिलकर चौराहे पर खडे हों और धर्म प्रचार करें । जैन धर्म - विश्वधर्म बने । अब समय आ चुका है की जैन धर्म के विनाश को अटकाने के लिए, एवं चारो तरफ से आ रही आपदाओं का नाश करने हेतु हम सब एकजुट हों । सब साथ मिलकर चिन्तन करें । आज हमारे में ही कई जैन अजैन जैसे बन गए है। कई क्षेत्रों में साधु-साध्वीजी भ. का विचरण नहीं है । हर एक जैन कट्टर जैन बने । धर्म का आचरण कट्टर रुप से करे । अपने धर्म के प्रति वफादार हो, यही मेरी हार्दिक तमन्ना है । लाखों मुसीबते हमारे धर्म के सामने है। हमे अपने धर्म को इससे बचाना है। धर्मरक्षा सबसे बडा धर्म है । मात्र माला या किताबे लेकर व प्रवचन सुनने से अब कुछ नहीं होने वाला, अब बाहर आओ, आगे बढों, जैनशासन का उज्ज्वल भावीप्रकाश आपकी राह देख रहा है । शासन रक्षव शासन की प्रभावना के लक्ष्य से ही मैने यह पुस्तक लिखी है ।
इस विषय में मुझे जोडने वाले आ.भ. राजशेखर सूरिजी व. उनके समर्थ शिष्यगण पं. राजपद्म रत्न - हंसविजयजी म.सा. को मैं सदा वन्दना करता हूँ । एवं इस कार्य में मुझे ज़्यादा प्रेरणा-ज्ञान देनेवाले प.पू. आ.भ. कीतियश सूरिजी म.सा. पू. आ. हर्षवर्धन सूरिजी म, प.पू. मु. विवेकयश विजयजी म. का मैं ऋणी हूँ। इस पुस्तक में जिनका सहयोग मिला है वे.-श्रीमति लताबेन बोथरा, श्री हीरालाल दुग्गड़, श्री प्रबोधचंदसेन आदि का मैं आभारी हूँ। विविध लेखकों नामी-अनामी संस्थाओं जिनके प्रकाशित साहित्य में से कइ चीजे ली गई है उन सबका मैं आभारी हूँ। मेरे परमगुरुदेव प.पू. मुनिवर्य तीर्थनंदन विजयजी महाराज मेरे ऊपर सदा आशीर्वाद बरसायें । मेरे माता मेरे पिता जिनकी छत्रछायों में सब धर्मकार्य हो रहे है उनको सदा मोरी वंदना । भाई हेरत व भाई आकाश, बस जिनके नाम से ही मेरे सब काम पूर्ण हो रहे है।