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________________ जैनत्व जागरण....... १२ भाइओँ के घर में गोत्रदेव के रुप में प्रभु प्रतिमाजी पाए जाते है | अहिंसक हमारे भाइ मारो-काटो ऐसे शब्द भी नहीं बोलते । मांसभक्षण यहाँ का मुख्य खुराक होते हुए भी यह हमारे भाई मांसाहार नहीं करते । इन लोगो को रात्रिभोजन व कंदमूल का त्याग है । हमारे तारक तीर्थो की महिमा हृदय में स्वीकारते है । प्रभुवीर का निर्वाण कल्याणक असाधारण तरीके से मनाते हैं । अंतराय धर्म का पालन करते है । बस मात्र हमारी तरह देव - गुरुधर्म का अवलंबन नहीं पा सके । समय की पुकार है कि सम्यक्त्व से विमुख हो चुके अपने इन भाईबन्धुओं को पुनः सम्यक्त्व मार्ग की ओर अग्रसर किया जाए । विकृत इतिहास के कारण अन्य धर्मों में जा मिले जैन जातियों को फिर से उनको आदिधर्म अर्थात् जैनधर्म की मुख्य धारा में जोड़ा जाए । समय है अंधकार को च्चीरते अरुणोदय का । समय है जिनशासन के नवल सूर्योदय का । समय है साधुत्व श्रावकत्व के घंटनाद का । समय है जैनत्व जागरण के शंखनादका । भूषण शाह
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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