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________________ जैनत्व जागरण...... १९३९ की धार्मिक परम्पराओं को और भी सुदढ़ करने के लिये उसने तरह-तरह के दृश्यों के प्रदर्शन के आयोजन किये जैसे हाथी, अग्नि ज्वाला और दीपमालिका आदि के जूलुस निकाले । इन जुलूसों में देव प्रतिमाओं का प्रदर्शन होता था । यह विचारणीय है कि ये प्रतिमाएं किनकी थी क्योंकि बौद्धों की मूर्तियाँ सर्वप्रथम कुषाण काल में बनी थी । अतः निश्चित तौर पर ये जिन तीर्थंकरों की मूर्तियां होनी चाहिये । क्योंकि इस प्रकार की परम्परा आज भी जैन धर्म में प्रचलित है । T अशोक ने अपनी प्रजा पर किसी भी धर्म को थोपने की कोशिश नहीं की । सभी धर्मों को राजकीय आश्रय दिया । उसके द्वारा नियुक्त धर्म महामात्य राज्य के धन से ब्राह्मणों, आजीविकों, निग्रन्थों सभी का हित चिंतन करते थे । चट्टान लेख १२ में लिखा है 'सभी सम्प्रदायों के सारी की वृद्धि हो ।' स्तम्भ लेख छः में उसने लिखवाया है- " मैं सभी समाजों को ध्यान में रखता हूँ क्योंकि मैंने सभी सम्प्रदायों के अनुयायिों की विविध प्रकार से पूजा की किन्तु अपने आप स्वयं इन सबके पास जाना मैं मुख्य कार्य समझता हूँ ।" हम कह सकते हैं कि अशोक के लेखों में जिस धर्म के तत्व है वह कोई धर्म विशेष नहीं है वह एक आचरण संहिता है जिसमें सभी धर्मों का सार है । डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है कि अशोक ने आसवों के संबंध में बौद्धों के स्थान पर जैनों का मत माना है । डॉ. भंडारकर (अशोक, पृ. १२९-३०) के मतानुसार अशोक के अन्य लेखों पर भी जैन प्रभाव दिखाई पड़ता है। उसके लेखों में जीव, प्राण, भूत और जात शब्द आचारांग सूत्र के पाणा - भूया - जीवा - सत्ता के ही पर्याय है । इस प्रकार अशोक ने अपने उस वचन का पालन ही किया है जिसमें उसने यह कहा है कि उसने अपने धर्म में ब्राह्मण, बौद्ध और जैन - सभी धर्मों का सार ग्रहण किया है। जैन और बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार अशोक के बाद उसका पौत्र सम्प्रति राजगद्दी पर आसीन हुआ । विविध तीर्थकल्प में लिखा है कि "मौर्य वंशी
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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