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जैनत्व जागरण.....
ने आजीवक संघ को दान की थी । Other Jain relice of Mauryan Bihar are a number of caves in the Barabarand Nagarjun Hills, dedicated by Ashoka and Dasaratha to the Ajivika sect.
उत्तराध्ययन सूत्र के दसवें अध्ययन में भगवान महावीर स्वामी ने गौतम स्वामी को पल भर भी प्रमाद न करके धर्म का आचरण करने का उपदेश दिया है।
धम्मं पि हुसद्दहंतया, दुल्लहया काएण फासया । इह कामगुणेहिं मुच्छिया, समयं गोयम मा पमायए ॥२०
"धर्म पर श्रद्धा होने पर भी उनका काया से आचरण करना अत्यन्त दुर्लभ है, इसीलिए हे गौतम, क्षणभर भी प्रमाद मत करो ।" इसी की अभिव्यक्ति हमें अशोक के शिलालेख के इस उल्लेख से होती है जिसमें लिखा है कि- "बहुत दिनों से हर घड़ी काम करने और समाचार प्राप्त करने की प्रथा नहीं रही, अतः अब मैं यह व्यवस्था करता हु कि सब समय और सब जगह चाहे मैं भोजन करता रहूँ, चाहे अन्तःपुर में रहूँ, अथवा शयनागार में, अथवा गोपनागार में, या अपने यान में अथवा राजोद्यान में, लोक-कार्य की सूचना प्रतिवेदकों द्वारा मुझे दी जाए, मैं प्रजा का कार्य हर जगह करने को प्रस्तुत हूँ.... मैंने आदेश दे रखा है कि प्रत्येक समय और प्रत्येक स्थान में मुझे तुरन्त सूचना मिलनी चाहिए क्योंकि अपने कार्यों और प्रयत्नों से मुझे कभी पूर्ण सन्तोष नहीं होता, क्योंकि जनता के हित के लिए ही मुझे सतत प्रयत्न करना चाहिए और उसका मूल कार्यों के संचालन
और प्रयत्न में है । जो कुछ मैं प्रयत्न करता हूँ उसका उद्देश्य यही है कि मैं प्राणीमात्र के प्रति अपने ऋण से उऋण हो सकूँ और मैं उन्हें यहाँ प्रसन्न रख सकू तथा परलोक में वे स्वर्ग प्राप्त कर सकें।"
अशोक की अहिंसा मनुष्यों तक सीमित नहीं थी बल्कि उसकी परिधि में क्षुद्र, मूक पशु-पक्षी भी आ गये थे। कुछ पर्वो अष्टमी, चतुर्दशी आदि के दिनों में जानवरों को दागने बधिया करने पर भी प्रतिबन्ध था । जनता