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= अकबर प्रतिबोधक कोन ? सुश्रावक सा. खेता नायकेन वर्धा पुत्र यशवन्तादि कुटुम्ब युतेन अष्ट चत्वासिंशत् (48) प्रमाणानि सुवर्ण नाणकानि मुक्तानि पूर्वदिक् सत्क प्रतोली निमित्त मिति श्री अहमदाबाद पार्वे उसमा पुरतः ।।श्रीरस्तु।।
प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा प्रकाशित तीर्थ स्वर्णगिरि-जालोर (लेखक- साहित्य वाचस्पति श्री भंवरलालजी नाहटा, पुस्तक के पृष्ठ 97 पर ‘मुनि जिनविजयजी के प्राचीन जैन लेख संग्रह से जालोर-स्वर्णगिरि के अभिलेख में से लेख नं. 4 के कुछ अंश यहाँ पर दिये जाते हैं____ 1) ।।.।। संवत् 1681 वर्षे प्रथम चैत्र वदि 5 गुरौ अद्येह श्री राठोड वंशे श्री सूरसिंघ पट्टे श्री महाराज श्री गजसिंहजी। ___5) पट्टशृंगार हार महाम्लेच्छाधिपति पातशाहि श्री अकबर प्रतिबोधक तद्दत्त जगद्गुरु बिरुदधारक श्री शत्रुजयादितीर्थ जीजीयादि करमोचक तद्दत्त षण्मास अमारि प्रवर्तक भट्टारक श्री हीरविजयसूरि पट्ट मुकुटायमान भ.
इस प्रकार अनेक तत्कालीन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि आ. श्री हीरविजयसूरिजी को 'जगद्गुरु' बिरुद अकबर बादशाह द्वारा ही दिया गया। जिस प्रकार आ. जिनचंद्रसूरिजी को 'युगप्रधान' बिरुद भी अकबर द्वारा दिया गया उसी प्रकार आ. हीरविजयसूरिजी को भी ‘जगद्गुरु' बिरुद अकबर द्वारा दिया गया । और संशोधन करने से कालक्रम को विचार ते सं 1640 में यह 'जगद्गुरु' बिरुद आ. हीरविजयसूरिजी को दिया गया था, ऐसा प्रतीत होता है।
शुभं भूयात् सकलसंघस्य ‘परमसंबोहीए सुहिणो भवन्तु जीवा, सुहिणो भवन्तु जीवा, सुहिणो भवन्तु जीवा'
(सकल संघ का मंगल हो।) (श्रेष्ठ सम्यक्त्व (श्रद्धा) की प्राप्ति से सभी जीव सुखी होवें।) परम तारक जिनाज्ञा के विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो, तो उसका
त्रिविध-त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडं।
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