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= अकबर प्रतिबोधक कोन ?== = तपागच्छीय आचार्य आदि द्वारा हुए शासन प्रभावक कार्य
जगद्गुरु हीरविजयसूरि, सवाई विजयसेन सूरि तथा आपके शिष्यों-प्रशिष्यों के प्रभाव से सम्राट अकबर ने समय-समय पर अपने सारे राज्य में राजकीय फ़रमानों (आज्ञापत्रों) को राजकीय मोहर लगाकर जारी किया; उन आज्ञाओं का विवरण इस प्रकार है।* - 1. श्वेतांबर जैनों के पर्युषण पर्व के 12 दिनों (भादो वदि 10 से भादो सुदि 6) तक; सारे रविवारों को, सम्राट के जन्म दिन का महीना, सम्राट के तीनों पुत्रों के जन्म के तीनों पूरे महीने, सूफ़ी लोगों के दिन, ईद के दिन, वर्ष में 12 सूर्य संक्रांतियाँ, नवरोज़ के दिन ; कुल मिलाकर वर्ष में 6 मास 6 दिन सारे राज्य में . सर्वथा जीवहिंसा बंद करने के फ़रमान (आज्ञापत्र) जारी करके उन्हें राज्य मुद्रांकित किया और उन्हें सारे राज्य में 14 सूबों के सूबेदारों को भेज दिया। ताकि इनके अनुसार वहाँ अहिंसा का पालन होता रहे।
2. गुजरात राज्य में जज़िया (अमुस्लिमों से लिये जाने वाला कर) लेना बन्द करा दिया।1
3. मेड़ता में जैनधर्म के त्योहारों को स्वतंत्रता पूर्वक मनाने का आदेश दिया।
4. डामर तालाब पर जाकर पशुओं को पिंजरों से मुक्त कराया तथा मछलियाँ पकड़ना बंद कराया।2
5. जैन मंदिरों के सामने बाजे बजाने की निषेधाज्ञा को हटाया।
6. सम्राट ने स्वयं शिकार खेलने का त्याग किया और गुरुदेव को वचन दिया कि सब पशु-पक्षी मेरे राज्य में मेरे समान सुखपूर्वक रहें, मैं सदा इसके लिये प्रयत्नशील रहूँगा।
7. अकबर स्वयं पाँच सौ चिड़ियों की जिह्वाओं का मांस प्रतिदिन खाया
1. मूल पुस्तक में 'सारे राज्य में' ऐसा लिखा है, परंतु हीरसौभाग्य ग्रंथ एवं ऐतिहासिक उल्लेखों के आधार से 'गुजरात राज्य में जजिया कर' आ. हीरसूरिजी के उपदेश से बंद हुआ था। अतः उपर 'सारे' की जगह पर 'गुजरात' लिखा
है।
* मुनि श्री पीयुषसागरजी (हाल में आचार्य) द्वारा संपादित 'सच्चाई छुपाने से सावधान' पुस्तक के पृष्ठ 339 में 'मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म' पुस्तक का यह 293 वाँ पृष्ठ पुरा उतार दिया गया है, जिसमें अकबर द्वारा किये गये सुकृतों का वर्णन दिया गया है, परंतु वे सुकृत जिन जैनाचार्यों के उपदेश से हुए थे उसका निर्देश करने वाले इस फकरे को काटकर यह लेख छापा गया है, जो प्रामाणिकता के अभाव को सूचित करता है।
उक्त पुस्तक के संपादक ने स्थानकवासी आदि द्वारा छुपायी जाने वाली शास्त्र एवं इतिहास सिद्ध मूर्तिपूजा की सच्चाई को उजागर करने हेतु जैन धर्म और जिन प्रतिमा पूजन' एवं 'मध्य एशिया और पंजाब में जैन धर्म' का प्रायः पूर्णतया उपयोग करके पुनः नूतन प्रकाशन के रूप में प्रगट किया है। ऐसा उनकी प्रस्तावना एवं ग्रंथों के परस्पर अवलोकन से भी स्पष्ट पता चलता है। सत्य को उजागर करने वाले अच्छे लेखों को पुनः प्रकाशित करने के ऐसे प्रयास आवकार्य ही होते हैं। परंतु साथ में यह समझना आवश्यक है कि मूर्तिपूजा की सच्चाई को छुपाना गलत है, उसी तरह तपागच्छ के आचार्यों द्वारा
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