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________________ अकबर प्रतिबोधक कोन ? फ़रमान स्वयं ही बताता है जैसे कि पहले देख चुके हैं कि आ . जिनचंद्रसूरिजी के बाद अकबर बादशाह आ. विजयसेनसूरिजी के संपर्क में आये थे। जैनाचार्यों के सतत समागम से अकबर के हृदय में दया भाव का विकास इतना हो गया था कि उसने, घर या वृक्षों पर घोंसले डालने वाले पक्षियों को भी मारने या पकड़ने की मनाई फरमायी । अकबर बादशाह इस फरमान को देने के समय तक कई अजैन सन्यासी एवं आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी सहित कई जैन संतों के समागम में भी आ चुका था फिर भी, आ. हीरसूरिजी की जो छाप अकबर के हृदय में अंकित हुई थी, वह अमिट थी। यह बात 'योगाभ्यास करने वालों में श्रेष्ठ हीरविजयसूरि के शिष्य अकबर के इन शब्दों से ही स्पष्ट हो जाती है। परंतु खेद की बात है कि गुरुजन एवं गच्छ के प्रति अत्यंत अनुराग के कारण कभी इतिहास की प्रस्तुति अन्य रीति से भी कर दी जाती है कि 'युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि' में पृष्ठ 83 में ऐसा बताया गया है कि 'अकबर अपने परिचय में आये सभी श्वेतांबरादि यति साधुओं में से आ. जिनचंद्रसूरिजी को ही सबसे श्रेष्ठ मानता है। ' अगर अकबर बादशाह ऐसा मानता होता तो आ . जिनचंद्रसूरिजी के परिचय के बाद दिये गये इस फरमान में आ. हीरविजयसूरिजी के लिए 'श्रेष्ठता' सूचक शब्द का प्रयोग नहीं करता । तथा 'आइन - ई-अकबरी' में अबुलफ़ज़ल ने अकबर की धर्मसभा में प्रथम श्रेणी में आ . हीरविजयसूरि के स्थान पर आ . जिनचंद्रसूरिजी को बताया होता, जबकि अबुलफ़ज़ल ने आ. हीरविजयसूरिजी को अकबर की धर्मसभा में प्रथम श्रेणी में बताया है, जबकि आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी के लिए इस ऐतिहासिक ग्रंथ में ऐसा कोई उल्लेख मिलता नहीं है । 32
SR No.002459
Book TitleAkbar Pratibodhak Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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