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=अकबर प्रतिबोधक कोन ?= दया, वि. सं. 1649 में आ. जिनचंद्रसूरिजी एवं आ. जिनसिंहसूरिजी की प्रार्थना को स्वीकार करके दिये गये फरमानों में, 'इसलिए हमने अपनी आमदया से हुक्म फरमा दिया कि...' एवं 'असल बात तो यह है कि परमेश्वर ने आदमी के वास्ते भिन्न-भिन्न पदार्थ उपजाये हैं, तब वह कभी किसी जानवर को दुःख न दे और अपने पेट को पशुओं का मरघट न बनावे।' - अकबर के इन शब्दों में स्पष्ट प्रतीत होता है। ___ इन फरमानों से यह भी पता चलता है कि. आ. जिनचंद्रसूरिजी ने आ. श्री हीरविजयसूरिजी को मिले फरमान का उल्लेख करके अमारि प्रवर्तन के शुभ कार्य के लिए प्रार्थना की थी। इसमें आ. श्री जिनचंद्रसूरिजी की शासन भक्ति और नम्रता . के दर्शन होते हैं क्योंकि स्वयं समर्थ आचार्य होते हुए भी जानते थे कि अकबर बादशाह मुझसे पहले आ. हीरविजयसूरिजी के संपर्क में आ चुके हैं और उनसे प्रभावित है। आचार्य श्री ने सोचा होगा कि 'आ. हीरसूरिजी के नाम से अगर शासन का कार्य होता है, तो इसमें क्या गलत है?' नम्रता एवं शासनभक्ति के बिना एक समर्थ आचार्य द्वारा अपनी प्रार्थना में अन्य गच्छ के आचार्य के नाम का निर्देश करना दुष्कर है।
अब हम अकबर बादशाह द्वारा विजयसेनसूरिजी को दिये गये फरमान को देखेंगे, जिसमें - 1. जैनों के आसपास गाय, बैल, भेंस एवं पाड़ा को कभी नहीं मारने का
तथा चमड़ा नहीं उतारने का। 2. हर महीने कुछ दिन मांस नहीं खाने का। 3. घर में या वृक्षों पर घोसलें बनाये हो, उन प्राणियों को मारने या कैद करने
की मनाइ का एवं 4. धर्म स्थानों की रक्षा का उल्लेख है। .
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