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: अकबर प्रतिबोधक कोन ?
चिन्तित न हों और ईश्वरोपासना में उत्साह रक्खें। इसको फ़र्ज समझ इसके विरुद्ध कुछ न होने देना । इलाही संवत् 35 अज़ार महीने की छठी तारीख़ और खुरदाद नाम के रोज़ यह लिखा गया । मुताबिक़ तारीख 28 वीं मुहर्रम सन् 999 हिजरी । मुरीदों (अनुयायियों) में से नम्रातिनम्र अबुल्फ़ज़ल ने लिखा और इब्राहीमहुसेन ने नोंध की ।
नक़ल मुताबिक़ असल के है।
('सूरीश्वर और सम्राट' में से साभार उद्धृत | )
फ़रमानों की महत्त्वपूर्ण बातें
अकबर बादशाह
इस फरमानों के निरीक्षण से स्पष्ट पता चलता है कि आ. श्री हीरविजयसूरिजी म.सा. के तप और पवित्रता का वर्णन सुनकर उन्हें बुलाया था और जैसा सुना था वैसा देखने पर खुश होकर आ. श्री . हीरविजयसूरिजी को आदर के स्थान से सम्मानित किया था।
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फरमान नं. 3 में योगाभ्यास करने वालों में श्रेष्ठ आ. श्री हीरविजयसूरिजी 'जो हमारे दर्बार के सच्चे हितेच्छु हैं - योगाभ्यास की सच्चाई, वृद्धि और ईश्वर की शोध पर नजर रखकर हुक्म हुआ' इन शब्दों से स्पष्ट होता है कि - आ. श्री हीरविजयसूरिजी के प्रति अकबर बादशाह को कितना बहुमान था ।
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