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=अकबर प्रतिबोधक कोन ?= इससे योगाभ्यास करने वालों में श्रेष्ठ हीरविजयसूरि 'सेवडा" और उनके धर्म के मानने वालों की- जिन्होंने हमारे दर्बार में हाज़िर होने की इज्जत पाई है और जो हमारे दर्बार के सच्चे हितेच्छु हैं- योगाभ्यास की सच्चाई, वृद्धि और ईश्वर की शोध पर नजर रखकर हुक्म हुआ कि, - उस शहर के (उस तरफ़ के) रहने वालों में से कोई भी इनको हरकत (कष्ट) न पहुँचावे और इनके मंदिरों तथा उपाश्रयों में भी कोई न उतरे। इसी तरह इनका कोई तिरस्कार भी न करे। यदि उसमें से (मंदिरों या उपाश्रयों में से) कुछ गिर गये, या उजड़ गये हों और उनको मानने, चाहने खैरात करने वालों में से कोई उसे सुधारना या उसकी नींव डालना चाहता हो तो उसे कोई बाह्य ज्ञानवाला (अज्ञानी) या धर्मांध न रोके और जिस तरह खुदा को नहीं पहचानने वाले, बारिश रोकने और ऐसे ही दूसरे कामों को करना-जिनका करना केवल परमात्मा के हाथ में है- मूर्खता से, जादू समझ, उसका अपराध उन बेचारे खुदा को पहचानने वालों पर लगाते हैं और उन्हें अनेक तरह के दुःख देते हैं। ऐसे काम तुम्हारे साये और बन्दोबस्त में नहीं होने चाहिए; क्योंकि तुम नसीब वाले और होशियार हो। यह भी सुना गया है कि, हाजी 'हबीबुल्लाह ने जो हमारी सत्य की शोध और ईश्वरीय पहचान के लिए थोड़ी जानकारी रखता है- इस जमात को कष्ट पहुँचाया है। इससे हमारे पवित्र मन को- जो दुनिया का बंदोबस्त करनेवाला है- बहुत ही बुरा लगा है। इसलिए तुम्हें इस बात की पूरी होशियारी रखनी चाहिए कि तुम्हारे प्रान्त में कोई किसी पर जुल्म न कर सके। उस तरफ़ के मौजूदा और भविष्य में होनेवाले हाकिम, नवाब या सरकारी छोटे से छोटे काम करने वाले अहलकारों के लिए भी यह नियम है कि वे राजा की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा का रूपान्तर समझें, उसे अपनी हालत सुधारने का वसीला समझें और उसके विरुद्ध न चलें; राजाज्ञा के अनुसार चलने में ही दीन और दुनिया का सुख एवं प्रत्यक्ष सम्मान समझें। यह फर्मान पढ़, इसकी नकल रख, उनको दे दिया जाय जिससे सदा के लिए उनके पास सनद रहे ; वे अपनी भक्ति की क्रियाएँ करने में
1. श्वेताम्बर जैन साधुओं के लिए संस्कृत में श्वेतपट' शब्द है। उसी का अपभ्रंश भाषा में 'सेवड' रूप होता है। वही रूप
विशेष बिगड़कर 'सेवड़ा' हुआ है। 'सेवड़ा' शब्द का उपयोग दो तरह से होता है। जैनों के लिए और जैन साधुओं के
लिए। अब भी मुसलमान आदि कई लोग प्रायः जैन साधुओं को सेवड़ा ही कहते हैं। 2. देखो पेज 31-32 'सूरीश्वर और सम्राट' पुस्तक के। 3. इसी पुस्तक के पृष्ठ 190-194 में और 'अकबरनामा के तीसरे भाग के वेवरीज कृत अंग्रेजी अनुवाद के पृ 207 में इसका हाल देखो।
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