________________
अनेकान्तवाद और अन्य दार्शनिक प्रणालियां
७७
नहीं बनती । अतः चार्वाक का यह चिन्तन स्याद्वाद का आधार लिये प्रतीत होता है । भौतिक क्षेत्र में स्याद्वाद को अपनाना स्याद्वाद का निषेध नहीं कहा
जा सकता ।
(३) पाश्चात्य दर्शन और स्याद्वाद
1
पाश्चात्य देशों में दर्शन (Philosophy) बुद्धि का चमत्कार रहा है । वहाँ लोग ज्ञान को मात्र ज्ञान के लिए ही जीवन का लक्ष्य समझते हैं । पाश्चात्य विचारों के अनुसार दार्शनिक वह है जो जीव, जगत, परमात्मा, परलोक आदि तत्त्वों का निरपेक्ष विद्यानुरागी हो । पाश्चात्य जगत का आदि दार्शनिक प्लेटो कहता है - "संसार के समस्त पदार्थ द्वन्द्वात्मक हैं, अतः जीवन के पश्चात् मृत्यु और मृत्यु के पश्चात् जीवन अनिवार्य है।"१३ इसी प्रकार सुकरात, अरस्तु आदि प्रमुख दार्शनिकों की निष्ठा भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त में रही है ।
ग्रीक दर्शन में भी एम्पीडोक्लीज (Empedocles) एटोमिस्ट्स (Atomists) और एनैक्सागोरस (Anaxagoras ) दार्शनिकों ने इलिअटिक्स (Eleatics) के नित्यत्ववाद और हैरेक्लिटस ( Hereclitus) के क्षणिकवाद का समन्वय करते हुए पदार्थों के नित्यदशा में रहेते हुए भी अपेक्षिक परिवर्तन (Relative change) स्वीकार किया है ।१४ ग्रीक के महान विचारक प्लेटो ने भी इसी प्रकार के विचार प्रगट किये हैं । १५ पश्चिम के आधुनिक दर्शन (Modern Philosophy) में भी इस प्रकार के समान विचारों की कमी नहीं हैं। उदाहरण के लिये जर्मनी के प्रकाण्ड तत्त्ववेत्ता हेगेल (Hegel) का कथन है, कि विरुद्धधर्मात्मकता ही संसार का मूल है। किसी वस्तु का यथार्थ वर्णन करने के लिये हमें उस वस्तु संबंधी संपूर्ण सत्य कहने के साथ उस वस्तु के विरुद्ध धर्मों का किस प्रकार समन्वय हो सकता है, यह बताना चाहिये । १६ नये विज्ञानवाद (New gdealism) के प्रतिपादक ब्रेडले के अनुसार प्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तुओं से तुलना किये जाने पर आवश्यकीय और अनावश्यकीय दोनों सिद्ध होती है। संसार में कोई भी पदार्थ नगण्य अथवा अकिंचित्कर नहीं कहा जा सकता । अतएव प्रत्येक तुच्छ से तुच्छ विचार में और छोटी से छोटी सत्ता में सत्यता विद्यमान है ।१७ आधुनिक दार्शनिक जोअचिम (Joachim) का कहना है, कि कोई भी विचार स्वतः ही, दूसरे विचार से सर्वथा अनपेक्षित होकर केवल