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________________ वर्धमान महावीर का अनेकान्तवाद और गौतम बुद्ध...... है। इस बात की प्रतीति प्रथम अंग आचारांग के प्रथम वाक्य से ही हो जाती __ भ० महावीरके मतसे जब तक अपनी या दूसरे की बुद्धिसे यह पता न लग जाय कि मैं या मेरा जीव एक गतिसे दूसरी गतिको प्राप्त होता है, जीव कहांसे आया, कौन था और कहाँ जायगा ?-तब तक कोई जीव आत्मवादी नहीं हो सकता, लोकवादी नहीं हो सकता, कर्म और क्रियावादी नहीं हो सकता। अतएव आत्माके विषयमें विचार करना यही संवरका और मोक्षका भी कारण है। जीवकी गति और अगतिके ज्ञान से मोक्षलाभ होता है इस बातको भ० महावीरने स्पष्टरूपसे कहा है- (आचा. १.५.६) - भगवती १२.५.४५२ । - इस प्रकार हम देखते हैं कि जिन प्रश्नों को भगवान् बुद्धने निरर्थक बताया है उन्हीं प्रश्नोंसे भगवान् महावीरने आध्यात्मिक जीवनका प्रारंभ माना है । अतएव उन प्रश्नोंको भ० महावीरने भ० बुद्धकी तरह अव्याकृत कोटिमें न रखकर व्याकृत ही किया है । इतनी सामान्य चर्चाके बाद अब आत्माकी नित्यता-अनित्यता के प्रस्तुत प्रश्न पर विचार किया जाता है - भगवान् बुद्धका कहना है कि तथागत मरणान्तर होता है या नहीं-ऐसा प्रश्न अन्यतीर्थिकोंको अज्ञानके कारण होता है । उन्हें रूपादि" का अज्ञान है अत- एव वे ऐसा प्रश्न करते हैं । वे रूपादिको आत्मा समझते हैं, या आत्माको रूपादियुक्त समझते हैं, या आत्मामें रूपादिको समझते हैं, या रूपमें आत्माको समझते हैं जब कि तथागत वैसा नहीं समझते१८ । अतएव तथागत को वैसे प्रश्न भी नहीं उठते और दूसरोंके ऐसा प्रश्नको वे अव्याकृत बताते हैं । मरणानन्तर रूप वेदना आदि प्रहीण हो जाता है अतएव अब प्रज्ञापनाके साधन रूपादि के न होनेसे तथागतके लिये 'है' या 'नही है' ऐसा व्यवहार किया नहीं जा सकता। अतएव मरणनन्तर तथागत 'है' या 'नहीं' है' इत्यादि प्रश्नोंको मैं अव्याकृत बताता हूँ। भ० महावीर ने जीवको अपेक्षाभेद से शाश्वत और अशाश्वत कहा है। इसकी स्पष्टता के लिये देखिये भग० ७.२.२७३ । स्पष्ट है कि द्रव्यार्थिक अर्थात् द्रव्यकी अपेक्षासे जीव नित्य है और भाव अर्थात् पर्यायकी दृष्टिसे जीव अनित्य है ऐसा मन्तव्य भ० महावीरका है।
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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