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अनेकान्तवाद : समन्वय शान्ति एवं समभाव का सूचक
अहिंसा है।
स्याद्वाद सिद्धान्त की चमत्कारिक शक्ति और व्यापक प्रभाव को
" स्याद्वाद से सब सत्य
हृदयंगम करके डो. हर्मन जैकोबी ने कहा था विचारों का द्वार खुल जाता है ॥"
सिद्धसेन दिवाकर ने कहा है
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" जेण विणा लोगस्स ववहारो सव्वथा ण णिव्वइए ।
तस्य भुवणेक- गुरुणो णमो ऽगंतवायस्स । २१
भावार्थ - जिसके बिना लोकव्यवहार सर्वथा नहीं चलता, उस भुवन श्रेष्ठ गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार हो ।
इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान डो. थोमसन ने कहा है
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"Jain logic is very high. The place of Syadvada in it is very important. It throws a fine light upon the various conditions and states of thing."
(न्यायशास्त्र में जैन न्याय उच्च है । उसमें स्याद्वाद का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है । वस्तुओं की भिन्न-भिन्न परिस्थितियों पर वह सुन्दर प्रकाश डालता है)
महामहोपाध्याय रामशास्त्री ने कहा है "स्याद्वाद जैन दर्शन का अभेद किला है । उसमें प्रतिवादियों के मायामय गोले प्रवेश नहीं कर सकते हैं ।" महात्मा गाँधी स्याद्वाद के विषय में कहते हैं, " स्याद्वाद मुझे बहुत प्रिय है। उसमें मैने मुसलमानों की दृष्टि से उनका, ईसाइयों की दृष्टि से उनका, इस प्रकार अन्य सभी का विचार करना सीखा । मेरे विचारों को या कार्य को कोई गलत मानता तब मुझे उसकी अज्ञानता पर पहले क्रोध आता था । अब मैं उनकी दृष्टिबिन्दु, उनकी आँखों से देख सकता हूँ। क्योंकि मैं जगत् के प्रेम का भूखा हूँ । स्याद्वाद का मूल अहिंसा और सत्य का युगल है ।" आगम साहित्य के मनीषी आचार्य श्री तुलसी ने कहा- " स्याद्वाद एक समुद्र है जिसमें सारे वाद विलीन हो जाते हैं ।"
स्याद्वाद एक तर्क-व्यूह के रूप में गृहीत नहीं हुआ, किन्तु सत्य