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________________ ५४ समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद knows him, John as God Knows him). -इसी प्रकार तीन स्मिथ । इसका तात्पर्य यह है कि हम अपने को या किसी अन्य को सम्पूर्ण रूप से नहीं जान सकते । यह समझ एक ओर हमें अन्य के प्रति उदार बनना सिखाती है और अन्य के द्वारा होनेवाली टीका के प्रति-सहिष्णु बनना सिखाती है । अर्थात् अन्य के दर्पण में हमारा जो प्रतिबिम्ब है उसे देखने की शिक्षा देती है। . उपनिषद में कहा है कि मा को बड़ा रखो, वह व्रत है - "महामना स्यात् तद् व्रतम् ।" इसीको सेन्ट पॉन ने “charity" कहा और उसे श्रद्धा तथा आशा से भी बड़ा पद दिया । And now abideth faith. hope, charity these three; but the greatest of these is charity. इसी Charity को गीता में "आत्मौपम्य" कहा है और धम्मपद में जिसके विषय में "अत्तानं उपमं कत्वा" ऐसा कहा गया है। किन्तु गुणों के विषय में ऊपर जो कुछ कहा गया है उसका कहीं अनर्थ न हो, इस दृष्टिकोण को सामने रखकर इतना-सा स्पष्टीकरण कर देना चाहती हूँ कि पाप व पुण्य में कोई भेद नहीं है और "रामाय स्वस्ति" रावणाय स्वस्ति" कहना एक ही बात है - ऐसा स्यावाद का अर्थ नहीं है। जो तारतम्य है वह गुणोत्कर्ष की अपेक्षा से है। इसी के साथ इतना और समझना चाहिए कि कई बार पाप-पुण्य का निर्णय करना जरा अटपटासा हो जाता है। इसी प्रकार कई बार व्यक्ति अनिच्छा होने पर भी विवश होकर पाप करता है। हम स्वयं भी ऐसा ही करते हैं। इससे गाँधीजी ने यह फलितार्थ निकाला कि पाप का तिरस्कार करना चाहिए, पापी का नहीं । पाप पर दया करके उसे पुण्य की कोटि में रखने से अनर्थ ही होता है। इसलिए इतिहासकार को एतिहासिक व्यक्तियों के कार्य का मूल्यांकन करने की जो सलाह लार्ड एकटन ने दी है वह ठीक है, क्योंकि न्याय व्यक्ति का नहीं अपितु उसके कार्यों का होता है। जीवन में अनुभव (Experience) और तर्क (Reason) दोनों की भिन्न भिन्न दृष्टियां हैं । अनुभव की दृष्टि से देखने पर मालूम होता है कि प्रकृति ने जगत् के समान जीवन में भी बाड खडी नहीं की है। जीवन में तो तेज और छाया (Light and shade) है अथवा जैन दर्शन के कथानुसार तरतम भाव है।
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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