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समन्वय, शान्ति और समत्वयोग का आधार अनेकान्तवाद यत्तत्कर्मनिबन्धनं तदपि नो जीवं विना युक्तिमत् ॥
. दीनाकृत टीका कर्म को सभी कार्यों का कारण मानने वाले अपने आपको 'कर्म कारणवादी' कहते हैं । ये लोग काल, स्वभाव, भवितव्यता आदि को नहीं मानते, उनका कहना है - - जगत में जो कुछ भी होता है वह कर्म के कारण ही होता है। कर्म से ही जीव कीडा, प्रेत, मनुष्य या देव बनता है। कर्म के कारण राम को वन में जाना पडा, कर्म के कारण सीता पर कलंक लगा और उसे अग्निपरीक्षा देनी पडी, कर्म के प्रताप से ही रामायण, महाभारत और पानिपत के युद्ध हुए, दो विश्व युद्ध हुए तथा हिटलर का पतन हुआ, कृष्ण का वध हुआ, इसामसीह को क्रोस पर लटकाया गया तथा गांधीजी की पिस्तोल की गोली से मृत्यु हुई। कर्म से ही राजा रंक और रंक राजा बन जाता है। उद्यम करने वाले भटकते रहते हैं जबकि कर्म की वजह से व्यक्ति सोता हुआ भी सफलता प्राप्त कर लेता
कर्म से एक वर्ष तक तीर्थंकर ऋषभदेव को अन्न प्राप्त नहीं हुआ और महावीर प्रभु के कान में कीले डाले गये । कर्म से ही नेपोलियन शहनशाह बना और कर्म के ही कारण बाद में केदी बन कर कारावास में मृत्यु को प्राप्त हुआ । कर्म कारणवादी अपने मत के समर्थन में एक मनोरंजक दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं -
किसी एक स्थान पर एक बाँस का टोकरा रखा हुआ था। उसमें किसी ने एक साँप को बन्ध करके रखा हुआ था । एक चुहे को लगा कि इस टोकरे में उसे कुछ खाने को मिलेगा। इसलिये उसने टोकरे को कुतर कर उसमें बडा सा छेद बनाया । पहले तो साँप भय से सतर्क हो गया । किन्तु जैसे ही चुहा अन्दर गया साँप उसको निगल गया और छेद के अन्दर से बाहर निकल कर वन में चला गया। सर्प को भक्ष्य और मुक्ति ये दोनों एक साथ मिल गई। लेकिन उद्यम करने वाला चुहा मृत्यु को प्राप्त हुआ। कहिये इसमें कर्म बलवान है या नहीं ? इस जगत में सभी कार्यों का कारण कर्म ही है। यहाँ कर्म शब्द का अर्थ पूर्व में किये गए कर्म और उसके द्वारा जो प्रारब्ध लिखा जाता है उस