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प्रथम प्रकरण अनेकान्त का अर्थ, उसका उद्भव तथा मर्यादा
अब अनेकान्त शब्द पर विचार करें । अनेकान्त शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, एक 'अनेक' शब्द, दूसरा 'अन्त' शब्द । अन्त शब्द की व्युत्पत्ति रत्नाकरावतारिका में इस प्रकार की गई है :
"अम्यते' गम्यते- निश्चीयते इति अन्तः धर्मः। न एकः अनेकः अनेकश्चासौ अन्तश्च इति अनेकान्तः।" वस्तु में अनेक धर्मों के समूह को मानना अनेकान्त है। .
अनेकान्त को स्याद्वाद भी कहा जाता है। "स्यात्" अनेकान्त द्योतक अव्यय है।
वास्तव में अनेकान्त क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है :यदेव तत् तदेव अतत् , यदेवैकं तदेवानेकम् । यदेव सत् तदेवाअसत् यदेव नित्यं । तदेवानित्यमित्येकवस्तुवस्तुत्वनिष्पादक परस्पर विरुद्धशक्तिद्वयप्रकाशनमनेकान्तः ।।
जो वस्तु तत्त्वस्वरूप है वही अतत्त्वस्वरूप भी है । जो वस्तु एक है वही अनेक भी है, जो वस्तु सत् है वही असत् भी है । तथा जो वस्तु नित्य है वही अनित्य भी है। इस प्रकार एक ही वस्तु के वस्तुत्व के कारणभूत परस्पर विरोधी धर्मयुगलों का प्रकाशन अनेकान्त है । और भी देखिए
"सदसन्नित्यानित्यादिसर्वथैकान्तप्रतिक्षेपलक्षणो नैकान्तः । -देवागम- अष्टशती कारिका । १०३