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________________ अनेकान्तवाद : प्रमुख दार्शनिकों की आलोचनाओं का निराकरण ८५ में दूषण देते हुए कहा था । "नैकस्मिन्नसंभवात् ।" -एक वस्तु में अनेक धर्म नहीं हो सकते हैं। शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर लिखित अपने सांख्य-भाष्य में उक्त सूत्र की व्याख्या में इसे "विवसन समय" लिखकर स्याद्वाद के सप्तभंगी नय में सूत्रनिर्दिष्ट विरोध के अलावा संशयदोष का भी संकेत किया है। सूत्र पर भाष्य लिखते हुए उन्होंने कहा है कि "एक वस्तु में परस्पर विरोधी अनेक धर्म नहीं हो सकते हैं। जैसे कि एक ही वस्तु शीत और उष्ण नहीं हो सकती है । जो सात पदार्थ या पंचास्तिकाय बताये हैं, उनका वर्णन जिस रूप में है, वे उस रूप में भी होंगे और अन्य रूप में भी । यानी एक भी रूप से उनका निश्चय नहीं होने से संशय दूषण आता है । प्रमाता, प्रमेति, आदि के स्वरूप में भी इसी तरह निश्चयात्मकता न होने से तिर्थंकर किसे उपदेश देंगे और श्रोता कैसे प्रवृत्ति करेंगे ? पांच अस्तिकायों की पांच संख्या है भी और नहीं भी, यह तो बड़ी विचित्र बात है। एक तरफ अवक्तव्य भी कहते हैं, फिर उसे वक्तव्य शब्द से कहते भी जाते हैं । यह तो स्पष्ट विरोध है कि "स्वर्ग और मोक्ष है भी और नहीं भी, नित्य भी है अनित्य भी।" तात्पर्य यह कि एक वस्तु में परस्पर विरोधी दो धर्मों का होना संभव ही नहीं है। अत: आर्हत मत का स्याद्वाद सिद्धान्त असंगत है।" शंकराचार्य के उक्त कथन के बारे में स्यावाद का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के पूर्व यहां उन विद्वानों का अभिमत उपस्थित करती हूँ, जिन्होंने शांकर भाष्य और स्याद्वाद के बारे में तुलनात्मक दृष्टि से चिन्तन करके अपने विचार व्यक्त किये हैं। प्रो. बलदेव उपाध्याय के अनुसार "स्याद्वाद संशयवाद का रूपान्तर नहीं है, आप उसे सम्भववाद कहना चाहते हैं, परन्तु "स्यात्" का अर्थ सम्भववाद करना भी न्यायसंगत नहीं है। स्यासि घटः अर्थात् स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से घट है ही, स्यानास्ति घटः परद्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी अपेक्षा से घट नहीं है । स्यादवाद स्पष्ट रूप से यह कह रहा है कि 'स्यास्ति' यह द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव इस स्व चतुष्टयको अपेक्षा से है ही, तो यह निश्चित अवधारणा है अतः यह न सम्भववाद है और न अनिश्चयवाद
SR No.002458
Book TitleSamanvay Shanti Aur Samatvayog Ka Adhar Anekantwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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