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________________ आगम के अनुकूल किया यदि किसी साधु ने अनशन है, असमय में फिर अशन त्याज्य है अशन कथा तक अशरण है। वीतराग सर्वज्ञ देव ने आगम में यो कथन किया, श्रवण किया कर सदा उसी का,मनन किया कर,मथन जिया।।८।। स्वर्णिम, सुरभित, सुभग, सौम्यतन सुरपुर में वर सुरसुख है, उन्हें शीघ्र से मिलता शुचितम शाश्वतभास्वत शिवसुख है। वीतराग विज्ञान सहित जो क्षुधा परीषह सहते हैं, दूर पाप से हुए आप हैं बुधजन जग को कहते हैं।।९।। पाप-ताप का कारण तन की ममता का बस वमन किया, शमी-दमी, मतिमान मुनी ने समता के प्रति नमन किया। विमल बोधमय सुधा चाव से तथा निरन्तर पीता है, उसे तृषा फिर नहीं सताती सुखमय जीवन जीता है।।१०।। कषाय रिपु का शमन किया है सने स्वरस में गुणी बने, नम्र नीत, भवभीत रीत हो अघ से, तप के धनी बने। मुक्ति रमा आ जिनके सम्मुख नाच, नाचती मुदित हुई, मनो इसी से तृषा जल रही ईर्षा करती कुपित हुई।।११।। निरालम्ब हो, स्वावलम्ब हो, जीवन जीते मुनिवर हैं, कभी तृषा या अन्य किसी वश कुपित बनें ना; मतिवर हैं। श्वान भौंकते सौ-सौ मिलकर पीछे - पीछे चलते हैं, विचलित कब हो गजदल आगे ललित चाल से चलते हैं।।१२।। व्यय-उद्भव, ध्रुव-लक्षण से जो परिलक्षित है खरा रहा, चिन्मय गुण से रचा गया है, समरस से है भरा रहा। मनो कभी मुनि तृषित हुआ औ निज में तब अवगाहित हो, जैसा सागर में शशि होता निश्चित सुख से भावित हो।।१३।। रव रव नरकों में वे नारक तृषित हुये हैं, व्यथित हुये, सदय हृदय ना अदय बने हैं प्राण कण्ठगत मथित हुये। उस जीवन से निज जीवन की तुलना कर मुनि कहते हैं, वहाँ सिन्धु सम दुःख रहा तो यहाँ बिन्दु हम सहते हैं।।१४।। (२६५)
SR No.002457
Book TitlePanchshati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar, Pannalal Sahityacharya
PublisherGyanganga
Publication Year1991
Total Pages370
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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