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उल्लासिक स्तोत्रम् ॥ _ २५ स्तोत्रको (गुरु ) बडेभारी ( दुह ) दुःखोंको (तासे) डरानेवाले ( पख्खिए ) पाक्षिकपर्वमें (चाउमासे) चातुर्मास पर्वमें ( वा ) अथवा ( बच्छरे ) पर्युषणपर्वमें ( पठह ) पठनकरो ( सुणह ) श्रवण करो (सिज्झाएह ) विकथा त्यागकर गुणनकरो ( झएह ) ध्यानकरो (चित्ते ) मनमें ( कुणह ) पदपदार्थादि चिन्तन करो ( मुणह ) सूत्रार्थसे जानों ( जेण ) जिससे (विग्धं ) विघ्नका ( सिग्धं ) सत्वर (घाएह ) नाशकलो.
(भावार्य) हे भव्यजीवो तुम इस पवित्र अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीके स्तोत्रको अनेकजन्मार्जित कर्मजनित भारी दुःखों को डरानेवाले पाक्षिकपर्वमें चातुर्मासपर्वमें अथवा पर्युषण पर्वमें पठनकरो श्रवणकरो विकथा छोड़ गुणनकरो ध्यानकरो मनमें पदपदार्थादि चिन्तनकरो सूत्रार्थसे जानो जिससे सब विघ्नोंका शीघही नाश होवे.
• ॥ गाथा ॥ इय विजयाजियसत्तुपुत्तसिरिअजिअजिणेसर ॥ तह अइराविससेणतणय पंचमचक्कीसर ॥