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________________ उल्लासिक स्तोत्रम् ॥ है जिसके प्रभावसे श्रेष्टयश फैलता है शरीर का तेज बढ़ता है अच्छा व्यापार होता है अत्यन्त संतोष होता है और संसारका उच्छेद ( भी) होता है.. ॥ गाथा ॥ ललियपयपयारं भूरि दिव्बंगहारम् ॥ फुडगणरसभावोदारसिंगारसारम् ॥ आणिमिसरमणीजहंसणच्छेअभीया ॥ इवपुणपणिमंदा कासि नट्टोवयारम् ॥ ६ ॥ (छाया) यद्दर्शनच्छेदभीता इव प्रणमनमन्दाः अनिमिषरमण्यः ललितपदप्रचारं भूरिदिव्याङ्गहारं स्फुटधनरसभावोदार श्रृंगारसारं नृत्योपहारं अकार्षः - ( पदार्थ) ( जइंसण ) भगवद्दशनके ( च्छेअ) अन्तरायसे (भीया ) डरी हुई ( इव ) ऐसी क्या ? (अणिमिस) देवोंकी ( रमणी) अंगनाएं (पुणमणि ) प्रणाम करनेमें ( मन्दा.) सुस्त ऐसी ( ललिय ) रमणीय हैं ( पयपयारं ) चरणोंकेन्यास जिसमें ( भूरि) बहुतसे (दिब्ध ) सुन्दर हैं ( अंगहारं ) अंगविक्षेप जिसमें
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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