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________________ ५० अनितशान्ति स्तबवम् । भूपुर इन्होंके ( अभिराम ) मनोहर ( सह) शब्दोंसे (मीसए ) मिश्रित ( कए ) कियेसते (अ) और ( हाव ) बहुतकाम विकार (भाव) थोडा विकाराभिप्राय ( विभम ) विलास ये हैं ( पगारएहिं ) प्रकार जिसमें ऐसे ( अंगहारएहिं ) अंगविक्षेपोंसे (नच्चिऊण) नाचकर ( देवनडिआहिं) देवताओं के सामने नाचनेवाली देवांगनाओंसे ( जस्स ) जिनभगवानके ( सुविक्कमा ) अत्यन्त पराक्रमशाली (ते) वे प्रसिद्ध (कमा).चरण (वंदिआ) वन्दन कियेगए ( तयं ) वे प्रसिद्ध (तिलोव) तीनों लोकों (सन्च ) सम्पूर्ण ( सत्त ) जीवोंको ( संतिकारयं ) विघ्नोपशम करनेवाले ( पसंत ) नष्ट होगये हैं ( सव्व ) सब (पाव ) पापरूप ( दोस) दोष जिनके ( उत्तमं ) श्रेष्ट (जिणं) जिनभगवान ( संति) शान्तिनाथस्वामी को ( एस ) यह ( अहं) मैं ( नमामि ) नमस्कार करताहूं। (भावार्थ) . बंसी सतार और तालसे मिलेहुए और आतोदवाद्य दुर्दुरट और मुरज इन्हों की मधुर ध्वनिसे मिश्रित संगीत शास्त्रोक्त श्रुतियोंका समकिरण कियेसते शुद्ध
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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