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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
रजोगुणसे रहित, पण्डितजनोंने वाणीसे स्तुति की है जिनकी मोक्षसुखार्थी, लोगोंको रक्षण करनेवाले ऐसे महामुनि शान्तिनाथ स्वामीको मन वचन कायसे उत्कंठित होकर मैं शरण जाताहूं।
(किसलयमालछंदः) ॥ किसलयमाला॥ .
॥ विशेषकं ॥ विणओणयसिररइअंजलिरिसिगणसंथुअंथिमिअं विबुहाहिवधणवइनरवइथुयमहिअचिअंबहुसो अइरुग्गय सरयादिवायरस महिअ सप्पभंतवसा गमणंगणविहरणसमुइअचारणवंदिअं सिरसा ॥ १९ ॥
. (छाया) विनयावनतशिरोरचितांजलि ऋषिगणसंस्तुतम् स्तिमितं विबुधाधिपधनपतिनरपतिभिः क्रमेण स्तुतं महितं बहुशः
अर्चितं. तपसा अचिरोद्गतशरदिवाकरसमधिकस्वप्रभं शिरसा गगनांगणविरहणसमुदितचारणवंदितम् ।
. (पदार्थ) (विणओणय ) विनयसे झुकेहुए ( सिर ) मस्तकों पर ( रइ) रचितहैं ( अंजलि ) अंजलि जिन्होंने