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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
'.. (छाया) . - तीर्थवरप्रवर्तकं तमोरजोरहितं धीरजनस्तुताचित ध्युतकलिकलुषं शांतिसुखप्रवृत्तदं ( अथवा ) शांतिसुख प्रवृत्तकं त्रिकरणैः (मनोवाक्कायैः) प्रयतः अहं महामुनि शान्तिं शरणं उपनमे. (शांतिसुखप्रवृत्तान् क्यते पालयति स शान्तिसुखप्रवृत्तदः तम् ). ..... . (पदार्थ)
(तित्थवर ) सकल तीर्थोसें श्रेष्ट तर्थिको (पवत्तयं) प्रवृत्त करनेवाले ( तम ) तमोगुण और (स्य) रजोगुण से ( रहिय ) रहित (धरिजण ) पण्डितजनों से ( थुअच्चिअं) स्तुति कियेगये और पुष्पोंसे पूजित (चुअ) नष्ट होगयाहै (कलिकलुसं ) र और मनका मेलापन जिनका (संतिसुह) मोक्षसुखमें (पवत्त) लगेहुए जनोंको (य) पालन करनेवाले ऐसे (महामुणिं) महामुनि ( संतिं ) शान्तिनाथ स्वामी को ( तिगरण ) मन वचन कायसे ( पयओ ) पवित्र होकर ( सरणं ) शरण ( उवणमे ) जाताहूं।
(भावार्थ ) श्रेष्ट चतुर्वण संघको प्रवृत्त करनेवाले, तमोगुण और