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________________ ૨૮ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ (खिन्जितकच्छंदः) ॥ खिजिययं ॥ सोम्मगुणेहिं पावइ नतं नवसारयससी । ने. अगुणेहिं पावइनतं नवसरयखी ॥ रूवगुणेहिं पावइनतं तिअसगणवई । सारगुणेहिं पावइनतं धरणिधरवई ॥ १७ ॥ (छाया) नवशारदशशी सौम्यगुणैः तं न प्राप्नोति नवशरद्रविः तेजोगुणैः तं न प्राप्नोति त्रिदशगणपतिः रूपगुणैः तं न प्राप्नोति धरणिधरपतिः सारगुणैः तं न प्राप्नोति । (पदार्थ) . 11 ). उदयहोनेवाला ( सारय ) शरदऋतु संबंधी ( ससी ) चांद ( सोम्मगुणेहिं ) आल्हादकत्वादि गुणोंसे (तं) आजितनाथ स्वामीको (न) नहीं (पावइ) प्राप्त होसकता ( नव ) नया (सरय) शरत्काल संबंधी ( रवी ) सूर्य (तेअगुणहिं ) प्रचंडतापादि गुणोंसे (तं) अजितनाथ स्वामीको (न) नहीं ( पावइ ) प्राप्त होसकता (तिअस ) देवताओंके ( गण ) समुदायका (वई ) पति इन्द्र (रूव गुणेहिं ) सौंदर्यादि गुणोंसे
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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