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अजितशान्ति स्तवनम् ।। ___२७ तवसंजमेअ अजिअं एस अहं थुणामि जिणं अंजिअं ।। १६ ॥
(छाया) सत्वे सदा आजितं शारीरे बले आजितम् तपःसंयमे अजितं ( एतादृशं ) अजितं जिनं एषः अहं स्तौमि ।'
. ( पदार्थ) . ( सत्तेअ) व्यवसायमें ( सया) निरंतर (अजिअं) न जीते जानेवाले ( सारीरेअ ) शरीरके ( बले ) बलमें ( अजिअं) न जीते जानेवाले ( तब ) बारह प्रकार के तपमें और (संजमे ) सतरह प्रकारके संयममें (आजि) न जीतेजानेवाले ऐसे (जिणं ) जिनभगवान (अजि) अजितनाथ स्वामीकी (एस) यह (अहं) मैं (थुणामि) स्तुति करताहूं।
(भावार्थ ) उद्योगमें सर्वकाल न किसीसे जीते जानेवाले देह संबंधी बलमें भी न किसीसे जीतेजानेवाले बारह प्रकार के तप और सतरह प्रकारके संयममें भी अजित ऐसे जिनभगवान अजितनाथ स्वामीकी यह मैं स्तुति करताहूं।