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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
( भावार्थ ) देव और दानवोंके इन्द्रसे द्वादश सूर्योसे और द्वादश चन्द्रमाओंसे वन्दना किये गए, रोगरहित, प्रीतिको उत्पन्न: करनेवाला अतिप्रख्यात और परमसुन्दर है स्वरूप: जिनका, देदीप्यमान चांदीके पात्रसमान घन निर्मल अरुक्ष और सफेद है दांतोंकी पंक्तियां जिनकी, शक्तिसे कीर्तिसे निर्लोभता से न्याययुक्त वचनोंसे अत्यन्त श्रेष्ट, प्रकाशमान तेजकेसमूह रूप, ध्यानकेयोग्य, सब लोगों में प्रख्यात महात्म्यसे जाननेलायक, ऐसे हे शान्तिनाथस्वामी, आप मुझे अन्तःकरणकी स्वस्थता देओ ।
(कुसुमलताछंदः )
॥ कुसुमलया ॥ ॥ युगलं ॥ विमलस सिकलाइरेअसोग्मं । वितिमिरसूरकराइरेअतेअं || तिअसवइगणाइरेअख्खं । धरणिधरप्पचराइरेअसारं ।। १५ ।।
( छाया )
विमल शशिकलातिरेकसाम्यं वितिभिरसूर्य्यकरातिरेकतेजसं त्रिदशपतिगणातिरेक रूपं धरणिधरप्रवरातिरेकसारम् ।
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