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उवसग्गहरस्तोत्रम् ॥
और ( दोगचं ) दुर्गतिको ( न ) नहीं ( पार्वति ) प्राप्त होते हैं ॥ ३ ॥
(भावार्थ )
विषधरस्फुलिंग मंत्रतो दूरही रहो परन्तु हे नाथ ! आपको किया हुआ प्रणामभी आरोग्य धन-धान्यादि समृद्धिरूप फलको देनेवाला होता है आपको वंदन करने वाले जीव पूर्वजन्मकृत प्रबलकर्मानुसार मनुष्ययोनिमें उत्पन्न हों वा तिर्यग्योनि में उत्पन्न हों तो उन योनिओंमें उन्हें भी दुःख और दुर्दशा कभी प्राप्त नहीं होती ॥ ३ ॥ ( गाथा )
॥ तुहसम्मत्ते लद्धे चिंतामणिकप्पपायवन्भहिए | || पावन्तिअविग्वेणं जीवाअयरामरंठाणं ॥ ४॥ (छाया) चिन्तामणिकल्पपादपाभ्यधिके तव सम्यक्त्वे लब्धे सतिं जीवाः अजरामरंस्थानं अविघ्नेन प्राप्नुवन्ति ॥ ४ ॥ (पदार्थ)
( चिंतामणि ) चिन्तामणिरत्नसे और ( कप्पपायवम्भहिए ) कल्पवृक्षसे अधिक ( तुह ) आपके ( सम्मत्ते ) सम्यक्त्वदर्शनको ( लद्धे ) प्राप्तकिये सते