SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिग्घमवहर स्तोत्र (पदार्थ) (जिण ) जिनभगवानको ( पणया ) प्रणामकरने वाली (सिद्धाइया ) सिद्धाइकानामकी महावीरस्वामीके शासनकी अधिष्ठात्रीदेवीके ( समेया ) साथ (य) और ( अप्पडिचक्का ) अप्रतिचक्राहै ( पमुहा) प्रमुख जिन्होंमें ऐसी (जिणसासणदेवया ) जिनशासनकी अधिष्ठात्री देवियां ( संघस्स ) चतुर्विधसंघके (विग्घहरा) अन्तरायोंको हरणकरनेवाली ( हवंतु ) होओ ॥ ६ ॥ (भावार्थ) जिनभगवानको प्रणामकरनेवाली महावीरस्वामीके शासनकी अधिष्टाइका सिद्धाइका नामकी देवीके साथ और अप्रतिचक्राहै प्रमुख जिन्होंमे ऐसी जिनशासनकी अधिष्टाइका देवियां चतुर्विधसंघके अन्तरायोंको हरप्प करनेवाली होओ ॥६॥ . . ॥गाथा ॥ सकाएसासचउरपुरहिउवद्धमाणजिणभत्तो । सिखिंभसंतिजक्खो रक्खउसंघपयतेण ॥ ७॥ . . (छाया) : .. शक्रादेशात् ( सच्चउर ) पुरेस्थितः वईमानजिनभक्तः श्रीब्रह्मशान्तियक्षः प्रयत्नेन संधं रक्षतु ॥ ७ ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy