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________________ सिग्वमवहर स्तोत्र || करनेवाले वैरियोंके ( पक्ख ) पक्षोंके ( लक्खा ) लक्ष जिन्होंने ( संपत्त ) सम्यक् प्रकारसे पाए हैं (सिवसुक्खा) कल्याणरूप सुख जिन्होंने (ते) वे प्रसिद्ध ( गोमुह पमुक्ख ) गोमुखयक्ष है प्रमुख जिन्होंमें ऐसे ( जंक्खा ) यक्ष ( क ) की है ( सगुण ) ज्ञानादि गुणोंसे युक्त (संघ) चतुर्विधसंक्की ( रक्खा ) रक्षा जिन्होंने ऐसे ( हवन्तु ) होओ ॥ ५ ॥ ( भावार्थ ) नाश किए हैं संघको उपद्रवकरनेवाले वैरियोंके पक्षों के लक्ष जिन्होंने, सम्यक प्रकारसे पाया है कल्याणरूप सुख जिन्होंने ऐसे गोमुखप्रमुखादियक्ष ज्ञानादिगुणोंसे युक्त चतुर्विधसंघकी रक्षाकरने वाले होओ ॥ ५ ॥ ॥ गाथा ॥ अप्पडिचकापमुहा जिणसासणदेवयायांजणपणया । सिद्धाइयासमेया हवंतु संघस्स विग्वहरा ॥ ६ ॥ (छाया) जिनप्रणताः सिद्धायिकासमेताः च अप्रतिचक्राप्रमुखाः जिनशासनदेवताः संघस्य विघ्नहराः भवन्तु ॥ ६ ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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