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________________ अजितशान्ति स्तवनम् ॥ . (भावार्थ ) कायिक्यादि क्रियाओंके भेदोंसे इकट्ठकियेहुए ज्ञानावरणादिकर्म और कषायोंसे अत्यन्त जुदाकरनेवाला और तीर्थांतरसंबधी अन्यदेवोंको वन्दनसे उत्पन्नहुए पुण्यसे न जीताजानेवाला और सम्यग्ज्ञानदर्शन चारित्रादि गुणोंसे व्याप्त और श्रेष्टमुनियोंकी अणिमादि अष्टसिद्धियोंतक पहुंचाहुआ ऐसा अजितनाथ स्वानीको और शान्तिनाथ महामुनिको कियाहुआ नमस्कार निरंतर मेरी पीडा की शान्तिकरनेवाला और मेरेमोक्षका करनेवाला होओ। - ( मागधिकाछंदः) ( मागहिआ) पुरिसाजइदुक्खवारणं जइअ विमग्गह सुक्खकारणं । अजिअं संतिंच भावओ अभयकरे सरणं पवज्झहा ॥६॥ (छाया) हे पुरुषाः यदि दुःखवारणं विमार्गयथ यदि च सौख्य कारणं विमार्गयथ ( तदा ) अजितं शांति च भावतः शारण गच्छत ( यतः एतौद्वौ ) अभयकरौ स्तः ( पवज्जहा ) इति दीर्घमार्षत्वात् ।
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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