SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रम् || भयंकर संसार रूप वनमें सिंहके समान विजयशाली होओ । ( सिंहपक्षे भावार्थ: ) किया है पशुओं को भय जिसने मृगोंके भन किये हैं शरीर जिसने मदोन्मत्त हाथियोंके दर्पको दलन किया है जिसने चखा है नूतन मांसकारस जिसने दिखाया है अपने भारी मुखमें दांतोंका समूह जिसने सम्पूर्ण पशुओंमे बड़े एसे सिंह के समान. अथ गाथा द्वयेन तस्यैव खगुरोः जिनवल्लभसूरेः सर्वोत्तमत्वं शरभोपम्येन श्लेषपूर्वकमाह ॥ ॥ गाथा ॥ उवरि लियसच्चरणो चउरणुउगप्पहाण संचरणो । असममयरायमहणो उट्टमुहोसह जस्सकरो ||१७|| दंसियनिम्मलनिच्चल दन्तगणोगणियसावउछ भजे । गुरुगिरिगुरुउसर हुन्न मूरिजिणवहशेहोछा ॥ १८ ॥ ( छाया प्रभुपक्षे ) उपरि स्थितसच्चरणः चतुरनुयोग प्रधानसंचरणः अस ममदराजमहनः असममदरागमथनोवा ऊर्ध्वमुखोयस्थकरः
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy