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गुरुपारतन्त्र्यस्तोत्रम् ॥
( हरिपक्षे ) कृतश्वापदसंत्रासः सारंगभग्नसंदेहः समदगजदर्पदलनः आस्वादितप्रवरक्रव्यरसः दर्शितगुरुवदनरदनसंदोहः निःशेषसत्वगुरुकः
( पदार्थ) (कय) परिपूर्णकी है (सावय) श्रावकोंकी (सन्तासो) शुभ आकांक्षा जिनने ( सारंग) प्रधान आचारादि अंगोंसे (भग्गसंदेहो) दूर कियाहै संदेह जिनने (गय ) भ्रष्ट हुआहै ( समय ) सिद्धांत जिन्होंसे ऐसे चोरासी आचार्योंके ( दप्प ) अभिमानको ( दलणो) नष्टकरनेवाले (आसाइय) आस्वादित कियाहै (पवर ) सर्वोत्तम ( कन्दरसो ) काव्यरस जिन्होंने ( दसिय ) प्रकट कियाहै (गुरुवयण) श्रीअभयदेवसरिके वचनोंकी ( रयण ) रचनाओंका (संदोहो ) समूह जिन्होंने ( नासेस ) सम्पूर्ण ( सत्त ) जीवोंके (गुरुउ ) अज्ञानांधकारको दूरकरनेवाले ऐसे ( सूरी जिगवल्लहो ) सरि जिनवलभ ( भीम ) भयंकर (भवकाणणंमि ) संसाररूप वनमें ( हरिष ) सिंहके समान (जयइ ) विजय शाली हैं।