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तंजय स्तोत्र ॥ दुःसाध्यं नास्ति । जिनदत्ताज्ञायांस्थितः सुनिष्ठितार्थः सन् सुखी भवति।
(पदार्थ) ( जो ) जो मनुष्य ( इय ) इस स्तोत्रको (तिसंझं) त्रिकाल ( पढ़इ) पठनकरताहै (तरस ) उसको (जए) जगतमें (किंपि ) कुछभी ( दुरसझं ) दुःसाध्य ( नच्छि ) नहीं है (जिण ) जिनभगवानने (दत्त) दीहुई ( अणाय ) आज्ञामें (ठिउ) स्थित · पुरुष ( सुनिठियट्ठो) सिद्धार्थ होकर (सुही ) मोक्षमुख भागी ( होइ ) होता है।
__ (भावार्थ)
जो मनुष्य इस स्तोत्रको त्रिकाल पठनकरताहै उसको जगतमें कुछभी दुःसाध्य नहींहै जिनभगवानकी आज्ञा में स्थित पुरुषों की सब कामना परिपूर्ण होकर वे मोक्ष सुखभागी होतेहैं।
इन्दुरदेशीय जैनश्वेताम्बर मुख्यपाठशालाध्यापक गोपीनाथसूनुपण्डित श्रीकृष्णशर्मकृतसुबोविनी व्याख्यासहितं जिनदत्तरिकृत
तंजयाख्यस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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