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________________ तंजय स्तोत्र ॥ (छाया). • श्रीवईमानतीर्थाधिपेन तीर्थ समर्पितं सुधर्मस्वामी यस्य सकलसंघरय सम्यक् सुखं दिशतु । ( पदार्थ) (सिरि ) शोभायुक्त (वडमाणतित्थाहिवेण ) तीर्थके अधिप वईमानस्वामीने (तित्थं ) चतर्विधसंघरूपतीर्थ ( समप्पियं ) समर्पितकिया ( सुहम्मसामी ) पंचमगणधर सुधर्मस्वामी ( जस्स ) उस प्रसिद्ध (सलय ) सकल ( संघरस ) संघको ( सम्म ) भलेप्रकार ( सुहं ) सुख ( दिसउ ) देओ। ___(भावार्थ) तीर्थके. अधिप श्रीवर्धमान स्वामीने चतुर्विधसंघरूप तीर्थ समर्पितकिया. उस प्रसिद्ध संपूर्ण संघको पंचम गणधर श्रीसुधर्मस्वामी भली भांति सुखदेओ। (गाथा) पर्यईइभद्दयाजे भद्दाणि दिसन्तु सयलसंघस्स। इयरसुराविहुसम्मं जिणगणहरकहियकारिस्स॥२५॥ (छाया) भद्रयाप्रकृत्योपलक्षिताः येजीवाइतरसुराअपि सम्य
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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