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संजय स्तोत्र ।।
(छाया) श्रीऋषभसेनप्रमुखाः हतभयनिवहाः सर्वजिनानांगणधारिणः तीर्थस्य अनघसवांछितं दिशन्तु ।
( पदार्थ ) (सिरि ) शोभायुक्त ( उसभसेण ) ऋषभसेनहैं ( पमुहा) प्रमुख जिन्होंमें ( हय ) नष्टहुवाहै (भय) संसारभयोंका (निवहा) समूह जिन्होंका ऐसे ( सब ) सम्पूर्ण (जिणाणं ) ऋषभ अजितादि तीर्थकरोंके ( गणहारिणो ) गणधर (तित्थस्स ) चतुर्विधसंघको ( अणहं ) अकलंकित ( सव्व ) अखिल (वछिय) अभिलषितसुख (दिसंतु ) देओ।
(भावार्थ) शोभायुक्त ऋषभसेनहै प्रमुख जिन्होंमें और नष्टहुआहै संसारसंबन्धी भयसमूह जिन्होंका ऐसे सम्पूर्ण तीर्थंकरोंके १४५२ गणधर चतुर्विध संघको अकलंकित आखिल अभिलषित सुखदेओ। ..
(गाथा) सिखिद्धमाणतित्थाहिवेण तित्थंसमप्पियंजस्स सम्मंसुहम्मसामी दिसउ सुहं सयलसंघस्स ॥२४॥