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________________ तंजय स्तोत्र ॥ __ २१ . (छाया) प्रणाशिततमओघं तत् ज्वलच्चक्रं यस्य पुरतोगच्छति (तस्मै) तीर्थकराय भगवते वईमानाय नमो नमोऽस्तु । (पदार्थ) (पणासिय ) नाशकियाहै ( तमो हं ) अज्ञानरूप अंधकारका समूह जिसने (तं) वह अपूर्व (जलंत) तेजसे देदीप्यमान (चकं ) धर्मचक्र (जस्स ) जिन भगवान् के ( पुरउ ) आगे ( गच्छइ) चलता है ( उन) (तित्थरस ) तीर्थङ्कर (भगवउ) भगवान् (वद्धमाणरस) वईमानस्वामीको (नमो नमो) वारंवार नमस्कार. होओ। __ (भावार्थ) अज्ञानरूप अंधकारको नाशकरनेवाला तेजसे देदीप्यमान वह अपूर्व धर्मचक्र जिन भगवानके आगे चलता है उन तीर्थंकर भगवान वर्द्धमान स्वामीको वारंवार नमस्कार होओ। (गाथा) सो जयउ जिणोवीरो जस्स जविसासणं जए. जयइ । सिद्धिपहसासणं कुपहनासणं सब्वभय महणं ॥ २२ ॥
SR No.002456
Book TitleStotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKantimuni, Shreedhar Shastri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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