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अजितशान्ति स्तवनम् ॥
द्वादशविधतपसे (निम्मल ) निर्मल होगयाहै (सहावे) स्वभाव जिन्होंका (निरुवम ) अनुपमेय और ( मह ) महानहै (प्पभावे ) प्रभाव जिन्होंका (सुदिट्ठ) केवल ज्ञान और दर्शन द्वारा भलीभांति देखलिये हैं ( सम्भावे ) विद्यमान जीवाजीवादिभाव जिन्होंने ऐसे (ते) वे प्रसिद्ध अजितनाथ और शान्तिनाथ भगवान को (हं ) मैं नन्दिषेण कवि (थोरसामि ) स्तुति करताहूं।
(भावार्थ) नष्टहोगए हैं अशोभनपरिणाम जिन्होंके विस्तीर्ण द्वादशविध तपश्चर्यासे निर्मल होगयाहै स्वभाव जिन्होंका अनुपमेय और महानहै प्रभाव जिन्होंका केवल ज्ञान और दर्शन द्वारा भलीभाँति जानलियेहैं विद्यमान जीवाजीवादिभाव जिन्होंने ऐसे वे प्रसिद्ध अजितनाथ और शान्तिनाथ स्वामीकी मैं स्तुति करताहूं।
(श्लोकः)
(सिलोगो) सव्वदुक्खप्पसंतीणं सव्वपावप्पसंतिणं । सया अजियसंतीणं नमो अजिअसतिणं ॥ ३ ॥