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________________ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजनुं जीवन चरित्र. 66 आ जीवलोकमां ते पुरुष भाग्यशाली छे, के जेना हृदयमां गुरु- महाराज वसी रहेला छे. परंतु जे पुरुष गुरु महाराजना हृदयमां वसी रहेलो छे, ते मनुष्य तो भाग्यशाळीओमां पण विशेष भाग्यशाळी छे. " ७२ मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजे सूचवेली हकीकतथी पूनाना श्रीसंघने जणायुं के, पधारेला मुनिराजोने आपणे चतुर्मास राखवा होय, तो तेमना गुरु- महाराजनी आज्ञानी खास जरुर छे. तेथी श्री संघे विचार करी जणाच्युं के - " अमारे आ चतुर्मासमां आपना सदुपदेशनो लाभ लेवा उत्कट भाव छे, आपे गुरु- महाराजनी आज्ञा मळे तो ज रोकावा जणान्युं, तो ए हकीकत पण अमे योग्य मानीएं छीए. माटे असे आचार्यजी महाराज पासे जई तेमनी आज्ञा लावी त्यां सुधी कृपा करी आप स्थिरता करो." मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजे ए वात कबूल राखी, अने पूनाथी श्रीसंघना केटलाएक संभावित गृहस्थो मुरबाड पहोंच्या. त्यां आचार्यजी महाराज श्री विजयेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज पासे जई वन्दन कर्यु, अने तेमनी पासे मुनिराज श्री भावविजयजी महाराजने पूनामां चतुर्मास करवा माटे आज्ञा आपका विनति करी. आचार्यजी महाराजे जणाव्यं के- “ आ वरसनुं चतुर्मास मुंबई करवानुं नक्की थई गयुं छे, वचन आपी चूक्या छीए, तेथी मुनि भावविजयजीने पूना चतुर्मास करवानी आज्ञा आपी शकाय तेम नथी. माटे तेमने विशेष न रोकशो. " 46
SR No.002455
Book TitleSubhashit Shloak Tatha Stotradi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhavvijay
PublisherBhupatrai Jadavji Shah
Publication Year1935
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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